प्रभु यीशु ने कहा, "मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है वह पाप का दास है। दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है" (यूहन्ना 8:34-35)। प्रभु के वचन हमें बताते हैं कि अगर लोग अपने आप को पाप के बंधन और बेड़ियों से मुक्त नहीं कर पाते, और वे पाप करना जारी रखते हैं, तो वे पाप के गुलाम हैं और कभी भी परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं करेंगे। बाइबल के इस अंश को पढ़कर, कई विश्वासी भाई-बहन यह सोचेंगे कि किस तरह वे दिन में पाप करते हैं और रात में उन्हें कबूल करते हैं, और तब वे चिंता करेंगे कि वे पाप में जीते हैं और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते, और वे दिल से दुखी रहेंगे। वे प्रभु में विश्वास करते हैं, तो वे खुद को पाप से मुक्त क्यों नहीं कर पाते? हम पाप की बेड़ियों से कैसे छुटकारा पा सकते हैं? अब हम सत्य के इस पहलू पर सहभागिता करेंगे।
प्रभु में अपनी आस्था में हम पाप से छुटकारा पाने में असमर्थ क्यों हैं?
जब यह सवाल उठता है कि क्यों हम प्रभु पर विश्वास करते हुए भी अपने आप को पाप से मुक्त करने में असमर्थ हैं, इसके लिए आइये सबसे पहले परमेश्वर के वचनों के इस अंश को पढ़ें: "यद्यपि मनुष्य को छुटकारा दिया गया है और उसके पापों को क्षमा किया गया है, फिर भी इसे केवल इतना ही माना जा सकता है कि परमेश्वर मनुष्य के अपराधों का स्मरण नहीं करता है और मनुष्य के अपराधों के अनुसार मनुष्य से व्यवहार नहीं करता है। हालाँकि, जब मनुष्य जो देह में रहता है, जिसे पाप से मुक्त नहीं किया गया है, वह भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को अंतहीन रूप से प्रकट करते हुए, केवल पाप करता रह सकता है। यही वह जीवन है जो मनुष्य जीता है, पाप और क्षमा का एक अंतहीन चक्र। अधिकांश मनुष्य दिन में सिर्फ इसलिए पाप करते हैं ताकि शाम को स्वीकार कर सकें। इस प्रकार, भले ही पापबलि मनुष्य के लिए सदैव प्रभावी है, फिर भी यह मनुष्य को पाप से बचाने में समर्थ नहीं होगी। उद्धार का केवल आधा कार्य ही पूरा किया गया है, क्योंकि मनुष्य में अभी भी भ्रष्ट स्वभाव है" ("देहधारण का रहस्य (4)")। परमेश्वर के वचन हमें दिखाते हैं कि भले ही हमें प्रभु यीशु का उद्धार मिला है और हमारे पापों को क्षमा कर दिया गया है, और भले ही, पाप करने के बाद, हम प्रार्थना करते हैं, प्रभु के सामने पाप को कबूल कर उसका पश्चाताप करते हैं और प्रभु अब हमें पापी के रूप में नहीं देखता है, तब भी हमारी पापी प्रकृति बनी रहती है; हम अभी भी अक्सर पाप करने, हमारे भ्रष्ट स्वभावों को उजागर करने, और दिन में पाप करके रात में उसे कबूल करने के लिए ज़िम्मेदार हैं। उदाहरण के लिए, जब अन्य लोग कुछ ऐसा करते या कहते हैं जिससे हमारे अपने हितों को नुकसान पहुँचता है, तो हम उनसे नफ़रत करने लगते हैं; हम अच्छी तरह जानते हैं कि परमेश्वर उन लोगों से प्यार करता है जो ईमानदार हैं, फिर भी हम अक्सर झूठ बोलते हैं और अपने हितों के लिए धोखा देते हैं; जब परमेश्वर की आशीष मिलती है, तो हम लगातार परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं; जब आपदा से घिर जाते हैं, तो हम परमेश्वर के बारे में शिकायत करना शुरू कर देते हैं, और हम परमेश्वर की निंदा भी करते हैं, खुले तौर पर उसके बारे में अपशब्द कहते हैं। इसलिए, यह देखा जा सकता है कि भले ही हमारे पापों को क्षमा कर दिया गया है, मगर तब भी हमारे भीतर के भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध नहीं हुए हैं, क्योंकि प्रभु यीशु ने जो कार्य किया था, वह सूली पर चढ़ाये जाने और मानवजाति के छुटकारे का कार्य था, न कि पूरी तरह से मनुष्य को शुद्ध करने और बचाने का काम था। हम शैतान द्वारा हजारों सालों से भ्रष्ट किये जा चुके हैं और हमारे शैतानी स्वभाव हमारी प्रकृतियों में मजबूती से जड़ें जमाये हुए हैं। अहंकार, दंभ, स्वार्थ, नीचता, विश्वासघात, धूर्तता, झूठ, कपट, ईर्ष्या के कारण होने वाले विवाद, द्वेष, क्रूरता, सत्य से नफ़रत, और परमेश्वर से शत्रुता—ये सब पाप से ज़्यादा कट्टर अवगुण हैं और ये लोगों को पूरी तरह से परमेश्वर के विरोधी बना सकते हैं। अगर इन मूल कारणों का समाधान नहीं किया गया, तो हम आज पाप करेंगे और इसी तरह कल भी पाप करेंगे, पाप के बंधनों और बेड़ियों से छुटकारा पाने में पूरी तरह से असमर्थ होंगे।
ईसाई खुद को पाप से मुक्त कैसे कर सकते हैं?
तो हम कैसे खुद को पूरी तरह से पाप के बंधनों से मुक्त कर सकते हैं? प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। "यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:47-48)।
परमेश्वर के वचन यह भी कहते हैं, "मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे" (प्रस्तावना)।
परमेश्वर के वचन हमें बताते हैं कि अंत के दिनों का परमेश्वर अपने वचन बोलने और न्याय का कार्य करने के लिये, मनुष्य के भ्रष्ट स्वभावों का पूरी तरह समाधान करने और उसे पाप से बचाने के लिए लौटकर आयेगा। आज, प्रभु यीशु देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आया है। प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य के आधार पर, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने अपने कार्य का एक चरण अर्थात परमेश्वर के घर में शुरू होने वाले न्याय के कार्य को पूरा किया है। उसने मानवजाति के शुद्धिकरण और उद्धार के लिए सभी सत्य व्यक्त किये हैं, जिसने हमारी पापी प्रकृतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने और हमें सत्य को समझने, पाप से छुटकारा पाने, पाप करना और परमेश्वर का विरोध करना बंद करने में सक्षम बनाया है, जिसने हमें ऐसा मनुष्य बनने में सक्षम बनाया है जो परमेश्वर की आज्ञा का पालन करता है और उसका सम्मान करता है, तभी हम वास्तव में परमेश्वर द्वारा प्राप्त किये जाएंगे। जब हम अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करेंगे, तभी हमें अपने भ्रष्ट स्वभावों से छुटकारा पाने और शुद्ध किये जाने का मौका मिलेगा।
परमेश्वर कैसे मनुष्य का शुद्धिकरण और न्याय करता है?
अंत के दिनों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर कैसे मनुष्य को शुद्ध करने और बचाने के लिए न्याय का कार्य करता है, ताकि मनुष्य खुद को पाप से मुक्त कर सके? आइये सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का दूसरा अंश पढ़ते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "अंत के दिनों में मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति समर्पण के लिए पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है" ("मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है")।
न्याय के कार्य के उल्लेख पर, हो सकता है कि कुछ लोग यह सोचें: क्या न्याय परमेश्वर द्वारा दिया गया दंड नहीं है? फिर कोई कैसे परमेश्वर द्वारा बचाया जा सकता है? हमारे मन में ऐसे ख़याल इसलिए आते हैं क्योंकि हम अंत के दिनों के परमेश्वर के न्याय के कार्य को नहीं जानते। परमेश्वर के वचन हमें बताते हैं कि अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा किया गया न्याय का कार्य मुख्य रूप से मनुष्य का न्याय करने और उसे शुद्ध करने के लिए सत्य की अभिव्यक्ति है, जिससे हम परमेश्वर के वचनों के प्रकाशनों से, अपने भ्रष्ट स्वभावों को पहचान पाते हैं और शैतान के हाथों हमारी भ्रष्टता के तथ्यात्मक सत्य को स्वीकार कर पाते हैं। परमेश्वर के वचन दोधारी तलवार की तरह हैं; जब हम परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे वह हमारे सामने हमारा न्याय करके हमें उजागर कर रहा है, जिससे हम अपने शैतानी भ्रष्ट स्वभावों को पहचान पाते हैं, ऐसे स्वभाव जो अभिमानी, अहंकारी, स्वार्थी, नीच, विश्वासघाती, चालाक, लालची और दुष्ट हैं। जब हम प्रभु में विश्वास करना शुरू करते हैं, जैसे कि हम प्रभु के अनुग्रह का आनंद लेते हैं, तो हमारे दिलों में शांति और आनंद महसूस होता है, विशेष रूप से जब हम प्रभु द्वारा हमें दी गई आशीषों और वादों को पूरा होते देखते हैं, तो हम उसके लिए खुद को खपाने में और भी ज़्यादा जोश दिखाने लगते हैं। हम कभी किसी भी सभा में हिस्सा लेना या बाइबल पढ़ना नहीं छोड़ते; हम अक्सर उन भाई-बहनों का का सहयोग करते हैं जो कमजोर हैं, हम जहां भी जाते हैं वहां सुसमाचार का प्रसार करते हैं, अपनी भक्ति और दान में दृढ़ रहते हैं, इस विश्वास के साथ कि अगर हम इस प्रकार से खुद को खपाएंगे, तो प्रभु यह सुनिश्चित करेगा कि हमारे लिए सब कुछ सुरक्षित और सुचारू रूप से चले, और उसके बाद हम स्वर्गिक राज्य में प्रवेश कर पायेंगे और हमें अनंत जीवन मिलेगा। लेकिन जब हमारे ऊपर दुर्भाग्य आता है, जब प्रभु हमारा ध्यान नहीं रखता और हमारी रक्षा नहीं करता, तो हमें पछतावा होता है कि कैसे हमने अपने आप को प्रभु के सामने खपाया, और यहाँ तक कि अपने दिलों में परमेश्वर को दोष भी देने लगते हैं। जब हम अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं, तो हम देखते हैं कि वह क्या कहता है, "इन दिनों ज्यादातर लोगों की हालत ऐसी है : 'आशीर्वाद पाने के लिए मुझे खुद को परमेश्वर के लिए खपाना ही चाहिए और उसके लिए कीमत चुकानी चाहिए। आशीर्वाद पाने के लिए मुझे परमेश्वर के लिए सब-कुछ छोड़ना चाहिए; मुझे वह काम पूरा करना चाहिए जो उसने मुझे सौंपा है, और अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभाना चाहिए।' उनकी इस स्थिति पर आशीर्वाद प्राप्त करने का इरादा हावी है; यह पूरी तरह से परमेश्वर से पुरस्कार प्राप्त करने, मुकुट हासिल करने के उद्देश्य से खुद को खपाने का उदाहरण है" ("पतरस का मार्ग कैसे अपनाएँ")। "मनुष्य का परमेश्वर के साथ सम्बन्ध केवल एक नग्न स्वार्थ है। यह आशीष देने वाले और लेने वाले के मध्य का सम्बन्ध है। सीधे-सीधे, यह कर्मचारी और नियोक्ता के मध्य के सम्बन्ध के समान है। कर्मचारी नियोक्ता के द्वारा पुरस्कार प्राप्त करने के लिए ही कार्य करता है। इस प्रकार के सम्बन्ध में, कोई स्नेह नहीं होता है, केवल एक सौदा होता है; प्रेम करने और प्रेम पाने जैसी कोई बात नहीं होती, केवल दान और दया होता है; कोई आपसी समझ नहीं होती केवल दबा हुआ क्रोध और धोखा होता है; कोई अंतरंगता नहीं होती, केवल एक खाई जो कभी भी भरी नहीं जा सकती" ("केवल परमेश्वर के प्रबंधन के मध्य ही मनुष्य बचाया जा सकता है")।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सीधे तौर पर परमेश्वर में हमारे विश्वास की गलत प्रेरणाओं और दृष्टिकोणों को उजागर करने पर केंद्रित होते हैं। सिर्फ़ आत्ममंथन करके ही हमें यह एहसास होता है कि हम परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम के कारण कड़ी मेहनत नहीं कर रहे हैं और क्योंकि हम परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहते हैं; इसके बजाय, हम परमेश्वर की आशीषों और वादों के बदले में अपने आप को खपाने पर ध्यान देना चाहते हैं—हमारा अच्छा व्यवहार और कार्य सिर्फ़ अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए होता है। ऐसे समय में, हमें पता चलता है कि हमारी प्रकृतियां कितनी स्वार्थी और नीच हैं। हम शैतान के इस नियम अनुसार जीते हैं, "स्वर्ग उन लोगों को नष्ट कर देता है जो स्वयं के लिए नहीं हैं"; हम जो कुछ भी करते हैं वह हमारे अपने फ़ायदे के लिए होता है, और यहाँ तक कि जब हम परमेश्वर में अपने विश्वास में खुद को थोड़ा-बहुत खपाते हैं, तो वह भी परमेश्वर से फ़ायदे और आशीष पाने के लिए होता है। हम महान आशीषों के बदले में कुछ मामूली खर्च करना चाहते हैं, और इस जीवन में सौ गुना लाभ और आने वाली दुनिया में अनंत जीवन पाना चाहते हैं। हम सृजित प्राणियों के रूप में अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर के प्रेम का मूल्य चुकाने के लिए अपने आप को बिलकुल भी नहीं खपाते हैं। जब हमारे अपने इरादे और इच्छाएँ अधूरी रह जाती हैं, तो हम निराश हो सकते हैं, शिकायत कर सकते हैं, परमेश्वर के ख़िलाफ़ विद्रोह और उसका विरोध भी कर सकते हैं। जब हमें पता चलता है कि हम कितने गंदे और भ्रष्ट हैं, हम विवेक और तर्क से हीन हैं, परमेश्वर से पुरस्कार और आशीष पाने के लिए पूरी तरह अयोग्य हैं, तो हमारे दिलों में पछतावा होता है और हम खुद को दोषी समझने लगते हैं। हम खुद को तुच्छ समझते हैं, और अपने पापों को कबूल करने के लिए परमेश्वर के सामने गिरने पर मजबूर हो जाते हैं, नए सिरे से शुरुआत करने की उम्मीद करते हैं, परमेश्वर के लिए खुद को खपाने को तैयार होते हैं, और अब बदले में कुछ भी नहीं मांगते। परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना का अनुभव करके, हम अपने शैतानी स्वभावों को पहचान पाते हैं, और हम देखते हैं कि परमेश्वर मनुष्य के पापों से नफ़रत करता है। हम देखते हैं कि जहाँ भी गंदगी है, वहाँ परमेश्वर का न्याय है, हमें परमेश्वर के पवित्र सार और उसके धार्मिक, अनुलंघनीय स्वभाव का पता चलता है, और इस प्रकार हमारे दिलों में परमेश्वर का भय पैदा होता है। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन में, हम धीरे-धीरे परमेश्वर की इच्छा और अपेक्षाओं को समझ पाते हैं, हम मनुष्य के कुछ कर्तव्यों को करने के लिए एक सृजित प्राणी की स्थिति में डटे रहते हैं, परमेश्वर के साथ हमारे संबंध में लेन-देन का भाव कम-से-कम होता है, उसके साथ हमारा रिश्ता और भी ज़्यादा क़रीब होता जाता है, हमारे भ्रष्ट स्वभावों में कुछ बदलाव आते हैं, और हम आख़िरकार एक सच्चे मनुष्य का जीवन जीते हैं।
हम आज अपनी वर्तमान स्थिति को बदल पाने में सक्षम हैं, यह पूरी तरह से हमारे ऊपर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय के कार्य का प्रभाव है। जिन लोगों ने अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव किया है और जो सचमुच सत्य से प्रेम करते हैं, वे सभी कई सालों के बाद स्पष्ट रूप से एक बदलाव देखते हैं और उन्हें इसका फल प्राप्त होता है; अपने दिलों में, वे यह समझ पाते हैं कि मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रेम कितना महान है और मनुष्य के लिए उसका उद्धार भी कितना महान है, और वे गहराई से इस बात की प्रशंसा करते हैं कि परमेश्वर का कार्य कितना महान है। वे यह समझते हैं कि सिर्फ़ परमेश्वर का न्याय और उसकी ताड़ना ही सबसे सच्चा उद्धार है, और सिर्फ़ अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करके और परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना को अनुभव करके ही, वे शुद्ध हो पायेंगे और बदल पायेंगे—यही एकमात्र मार्ग है जिससे वे खुद को पाप से मुक्त कर सकते हैं।
स्रोत: यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए
परमेश्वर की प्रतिक्रिया के लिए हमें परमेश्वर से प्रार्थना कैसे करनी चाहिए? लेख पढ़ने से आपको पता चलेगा कि परमेश्वर से प्रार्थना कैसे करें!
हम अपने जीवन में पाप के बंधन से क्यों नहीं बच सकते? मसीही जीवन के बारे में इस लेख को पढ़ें और आपको पाप से बचने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का रास्ता मिलेगा।
Write a comment