क्या वे लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं जिनके पाप तो क्षमा कर दिए गये हैं लेकिन जो अभी भी अक्सर पाप करते हैं?

ऐक्सी, मलेशिया

 

संपादक की टिप्पणी

 

हर ईसाई स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर पाने की खूबसूरत आशा करता है। लेकिन किस तरह के लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं? कुछ लोग सोचते हैं कि जब तक वे श्रम करते हैं, काम करते हैं, पीड़ा सहते हैं, स्वयं को खपाते हैं, और अपने अंत समय तक ऐसा करते रहते हैं, तो वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि जब हम प्रभु पर विश्वास करते हैं तो हमें हमारे पापों से छुटकारा दे दिया जाता है, और पाप के बिना, हमें केवल प्रभु के वापस आने का इंतजार करना होगा जब हम स्वर्गारोहित कर लिए जायेंगे किंतु क्या वास्तव में बात यही है? एक ईसाई व्यक्ति ऐक्सी ने इसका जवाब पा लिया है।

 

जब मैं 12 वर्ष का था, मैंने प्रभु यीशु पर विश्वास करना शुरू किया और ईसाई बन गया। विश्वास करने के बाद, मैं रविवार की आराधना और बाइबल अध्ययन समूहों में सक्रिय रूप से और दृढ़ता से भाग लिया करता था। बाइबल अध्ययन की बैठकों में, हम अक्सर 2 तीमुथियुस 4:7-8, "मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धार्मिकता का वह मुकुट रखा हुआ है", पर चर्चा करते थे। हमें लगता था कि, ईसाई होने के नाते, हमें पौलुस का अनुकरण करना चाहिए और काम करने का प्रयास करते हुए भाग-दौड़ करनी चाहिए, क्योंकि प्रभु हमें धार्मिकता का ताज सौंपेंगे। हमारे पादरी भी अक्सर यह कहते हुए हमें प्रोत्साहित करते थे कि स्वर्ग के राज्य में प्रयासों के माध्यम से प्रवेश किया जाता है, और जब तक हम प्रभु के कार्य का अनुसरण करने के लिए प्रयास करते हैं, उसे परिश्रमपूर्वक करते हैं, तब तक प्रभु लौटने पर हमें स्वर्ग के राज्य में आरोहित कर लेंगे। ये शिक्षाएं परमेश्वर में मेरे विश्वास की आधारशिला बन गयीं, और मैंने मन में संकल्प लिया कि मैं अपनी पूरी शक्ति से कलीसिया सेवा कार्य में भाग लेने के लिए हरसंभव प्रयास करूँगा ताकि मैं परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त "योग्यता" अर्जित कर सकूँ, ताकि जब वे आयें, तो मैं स्वर्ग के राज्य में आरोहित किया जा सकूँ।

 

विश्वविद्यालय में, मेरे पादरी ने कलीसिया में और अधिक प्रतिभा को बढ़ावा देने की बात की, ताकि कलीसिया का हर जगह विस्तार हो सके। जब मैंने देखा कि कलीसिया को अधिक लोगों की आवश्यकता है जो इसमें भाग लें और सेवा करें, तो मैंने सोचा, "अगर मैं प्रभु के लिए दृढ़तापूर्वक काम और श्रम करूँ, स्वयं को खपाऊँ, तो परमेश्वर निस्संदेह मुझे आशीष देंगे, और मैं स्वर्ग में अपने लिए पुरस्कार अर्जित कर सकता हूँ।" हालाँकि, उस अवधि के दौरान अपने पाठ्यक्रम के काम में बहुत व्यस्त था, लेकिन प्रत्येक सप्ताह, मैंने कक्षा के बाहर का अपना सारा समय सेवा कार्य करने, अध्ययन समूह की अगुआई करने, अपने भाई-बहनों से मेल-जोल और उनको सहारा देने में लगाया। यही नहीं कलीसिया की गतिविधियों की योजना बनाने, कलीसिया प्रशिक्षण में हिस्सा आदि में भी समय दिया। जब भी कलीसिया को मेरी सेवा की आवश्यकता होती थी, तो मैं निश्चित रूप से हाज़िर रहता था। भले ही मैं इतना व्यस्त था कि मुझे कलीसिया सेवा और अपनी कक्षाओं के बीच सांस लेने का भी समय नहीं मिलता था, लेकिन जब मैं सोचता था कि मेरे श्रम और कार्यों के बदले कैसे मुझे एक अच्छा भविष्य और प्रभु का आशीष मिलेगा, तो मुझे लगता था जैसे मेरे सभी बलिदान इसके लायक हैं।

 

लेकिन, धीरे-धीरे, मुझे पता चला कि कलीसिया के अगुआ अक्सर चढ़ावे को लेकर विवाद करते थे, वे हितों को लेकर गुटों में बंट हुए थे और कलीसिया के कार्यकर्ता आपस में पद को लेकर झगड़ते थे। मैं भी अक्सर पाप में जीता था, मैं उन भाई-बहनों के प्रति बहुत उत्साही था, जो मेरी देखभाल और मदद करते थे, लेकिन जब ऐसे भाई-बहनों को मेरी देखभाल और मदद की जरूरत होती थी जिनसे मैं परिचित नहीं था, तो मैं प्यार से उनकी सहायता करना नहीं चाहता था। मैंने एक अध्ययन समूह का नेता बनने के लिए जानबूझकर कुछ बातें कहीं और करीं, और इस तरह, अपने सहकर्मियों के खिलाफ प्रतिष्ठा और हित के लिए संघर्ष किया। इन सभी परिस्थितियों ने मुझे बहुत भ्रमित कर दिया। मेरे समेत कलीसिया के अगुआ और कार्यकर्ता, प्रभु की सेवा में, शिकायत किये बिना श्रम कर सकते थे, साथ ही बहुत अधिक त्याग कर सकते थे, स्वयं को खपा सकते थे। ऐसा क्यों था कि प्रभु यीशु के हमें सहनशील, धैर्यवान और दूसरों से अपने समान प्रेम करना सिखाने के बावजूद भी हम ऐसा नहीं कर पाते थे?

 

संयोग से, विश्वविद्यालय की मेरी एक बहन ने मुझे और एक अन्य भाई को एक ऑनलाइन बाइबल अध्ययन समूह में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। एक बैठक में, हमने धर्मशास्त्र के इन पदों की जाँच की, "जो मुझसे, 'हे प्रभु, हे प्रभु' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत लोग मुझसे कहेंगे; 'हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हमने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए?' तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, 'मैंने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करनेवालों, मेरे पास से चले जाओ'" (मत्ती 7:21-23)। मेरे भाई ने कहा, "पवित्रशास्त्र में उल्लिखित ये लोग, जो अधिकांश लोगों की धारणाओं के अनुसार प्रभु के नाम पर भविष्यवाणी और काम करते हैं वे, वे लोग हैं जो प्रभु के लिए सबसे अधिक स्वयं को खपाते हैं और बलिदान करते हैं। वे ऐसे लोग होने चाहिए, जिन्हें प्रभु सबसे अधिक पसंद करते हैं, और स्वर्ग के राज्य में जिनका स्थान निश्चित है। लेकिन प्रभु क्यों कहते हैं कि वह उन्हें स्वीकार नहीं करते हैं और इसके बजाय उनके पापों के लिए उनकी निंदा करते हैं?"

 

इन पदों को पढ़ने और अपने भाई के सवाल को सुनने के बाद, मैंने सोचा: हमने एक साल पहले अपने बाइबल अध्ययन समूह में इस बारे में बात की थी। उस समय, एक भाई ने यही सवाल पूछा था। प्रभु यीशु क्यों कहते हैं कि श्रम और काम करने वाले ये लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते? यह हमारे इस विश्वास के साथ टकराता हुआ क्यों प्रतीत होता है कि हम विश्वास करते हैं तो हम धार्मिक कहलायेंगे, और हम श्रम और कार्य के माध्यम से स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं? भले ही हमने इन सवालों पर चर्चा की हो, लेकिन हमें इन रहस्यों का कोई समाधान नहीं मिला। बाद में, मैंने कलीसिया में अपने एक दोस्त से इसका जवाब माँगा। मिस्टर हुआंग, बाइबल से बहुत परिचित थे, लेकिन वे भी इसका कारण समझा पाने में नाकाम रहे, वे अपने विश्वास पर डटे रहे कि श्रम और काम हमें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की अनुमति देता है। उस दिन, इस भाई ने वही सवाल उठाया, जिससे मेरे मन में जिज्ञासा जगी। मेरा भाई कैसे संगति करेगा, मैं यह सुनना चाहता था।

 

मेरे भाई ने कहा, "कई लोग पौलुस के कथन, 'मैं मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धार्मिकता का वह मुकुट रखा हुआ है' (2 तीमुथियुस 4:7-8), को पढ़ते हैं और इसे अपना आदर्श वाक्य बना लेते हैं। वे श्रम, काम, पीड़ा और स्वयं को खपाने का प्रयास करते हैं, उनका मानना है कि अगर वे इन चीज़ों को करते रहते हैं, तो उन्हें प्रभु के द्वारा स्वर्ग के राज्य में आरोहित किया जाएगा। लेकिन, क्या यह परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है? क्या प्रभु यीशु ने यह कहा था कि केवल श्रम और काम, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने और पुरस्कृत होने के लिए पर्याप्त हैं? स्वर्ग के राज्य में कौन प्रवेश करेगा इसका नियंत्रण परमेश्वर करते हैं, इसलिए किस प्रकार के लोग प्रवेश कर सकते हैं, इस समझ का आधार हमें प्रभु के वचनों को बनाना चाहिए न कि हमारी अपनी धारणाओं और कल्पनाओं को। प्रभु यीशु ने कहा है, 'जो मुझसे, 'हे प्रभु, हे प्रभु' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है' (मत्ती 7:21)। 'और तू प्रभु अपने परमेश्‍वर से अपने सारे मन से, और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना' (मरकुस 12:30)। प्रभु बहुत स्पष्ट रूप से कहते हैं कि केवल वे ही जो पिता की इच्छा को पूरा करते हैं, वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं, वे लोग जो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करते हैं, वे हैं जो परमेश्वर की इच्छा को पूरा करते हैं, परमेश्वर को अपने पूरे दिल, आत्मा और मन से प्रेम करते हैं, और जो परमेश्वर का आज्ञापालन करते हैं। वह यह नहीं कहते हैं कि जो श्रम और काम करते हैं वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे। व्यवस्था के युग में मुख्य याजकों, शास्त्रियों और फरीसियों ने मंदिर में नंगे पांव सेवा की, यहाँ तक कि पृथ्वी के सुदूर कोनों में जाकर सुसमाचार प्रचार भी किया। बाहर से, वे परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाने, त्याग करने पीड़ा और शिकायत सहने वाले दिखाई पड़ते थे, लेकिन जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने के लिए आये तो, अपने पदों और आय को सुरक्षित रखने के लिए, उन्होंने हर तरह की अफवाहों को गढ़ा, जिसका जमकर विरोध किया और प्रभु यीशु की निंदा की। यहूदी धर्म के साधारण विश्वासियों को प्रभु यीशु की ओर मुड़ने से रोक दिया। वे परमेश्वर में विश्वास करते थे, लेकिन परमेश्वर को नहीं जानते थे, और परमेश्वर का विरोध करने और निंदा करने में भी सक्षम थे। इसलिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन्होंने कितना काम किया, परमेश्वर कभी भी ऐसे लोगों को अपने राज्य में प्रवेश नहीं करने देंगे।"

 

"मुझे याद है कि हमारी कलीसिया में कैसे, बहुत से लोग प्रभु के कार्य के लिए सब कुछ त्यागने में सक्षम होने के बाद भी, हवा या बारिश की परवाह न करते हुए परमेश्वर की सेवा करने के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर देने के बावजूद, निर्विवादित रूप से अक्सर प्रभु के शिक्षाओं का पालन करने असमर्थ होते थे। हमारा काम और स्वयं को खपाना अक्सर हमारी खुद की महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को पूरा करता था, और यह पूरी तरह से परमेश्वर के प्रेम या उन्हें संतुष्ट करने की ख़ातिर नहीं किया जाता था। कभी-कभी, परमेश्वर की सेवा में, कुछ लोग हमारे भाई-बहनों द्वारा परमेश्वर को दिए गए चढ़ावों को चुरा लेते थे, उन्हें अपने भौतिक जीवन की पूर्ति के लिए रख लेते थे। अन्य लोग प्रभु से पुरस्कार पाने के बदले श्रम और काम करते थे न कि परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान देने के लिए या परमेश्वर की ख़ातिर। कुछ लोग अक्सर अपने काम में और उपदेशों में प्रभु का गुणगान करने और उनकी गवाही देने के बजाय, स्वयं को ऊँचा उठाते और अपनी गवाही देते थे, ताकि विश्वासीगण उनकी आराधना करें और उन्हें सम्मान की नज़रों से देखें। उन लोगों के दिल में परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं थी, बल्कि अपना गुणगान गाने वालों के लिए जगह थी। कुछ लोगों ने जोश के साथ स्वयं को खपाया ताकि नेतृत्व की स्थिति हासिल कर सकें या विश्वासियों के बीच प्रतिष्ठा हासिल करने कर सकें। कुछ लोग, काम करते और मेहनत करते हुए भी, दौलत-शौहरत के लिए संघर्ष करते थे, अपने से अलग राय वाले लोगों को अलग-थलग करके, गुटों और समूहों का गठन करते थे, और अपने स्वयं के राज्यों को स्थापित करने का प्रयास करते थे…। क्या इस तरह के लोग संभवतः परमेश्वर की इच्छा पूरी कर सकते थे? क्या वे वास्तव में प्रभु को प्यार और संतुष्ट कर रहे थे? ऐसे लोग कभी भी परमेश्वर की इच्छा को पूरा नहीं कर सकते, परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने की तो और भी संभावना नहीं है। हमने हमेशा सोचा था कि श्रम और कार्य, हमें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की अनुमति देंगे, लेकिन यह पूरी तरह से हमारी अपनी धारणाओं और कल्पनाओं पर आधारित था।"

 

अपने भाई की संगति सुनने के बाद, कई दृश्य मेरे दिमाग में कौंध गए: कलीसिया के अगुआ और कार्यकर्ता अपनी प्रतिष्ठा और अपने हितों के लिए लड़ते हुए, जरूरतमंद अपरिचित भाई-बहनों की मदद करने की मेरी अनिच्छा, अध्ययन समूह के नेता बनने के लिए जो कुछ मैंने कहा, किया और जो दिखावा किया और कैसे मैं अपने सहकर्मियों से अपनी प्रतिष्ठा और हितों के लिए लड़ा…। हम वास्तव में पाप में जी रहे हैं, हम वे लोग नहीं हैं जो परमेश्वर की इच्छा पूरी करते हैं!

 

अगले दिन, मैं अपने भाई की संगति के बारे में सोचता ही जा रहा था। उनके शब्दों को बार-बार अपने दिमाग में दोहरा रहा था, यह सोच रहा था कि उनकी संगति वास्तव में प्रभु के वचनों के अनुसार थी। जब हमने श्रम किया, काम किया, और स्वयं को खपाया, तो हमने अपनी प्रतिष्ठा, हितों और पदों के लिए भी संघर्ष किया, लाभ के मामले में आपस में भिड़ गए, झूठ बोला, एक-दूसरे को धोखा दिया, अक्सर पाप किया और प्रभु का विरोध किया। हमारे कर्म पिता की इच्छा को पूरा करने वाले नहीं थे। प्रभु ने कहा है, "परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।" जो लोग हमारी तरह बलिदान करते हैं और स्वयं को खपाते हैं वे आखिर किस तरह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं? लेकिन दूसरी तरफ, भले ही हमारे काम और स्वयं को खपाने के पीछे के बहुत से इरादे गलत थे, और हम अभी भी पाप कर सकते हैं, प्रभु का विरोध कर सकते हैं, फिर भी हमारे पादरी ने अक्सर कहते थे कि प्रभु ने हमारे पापों को माफ कर दिया है, और जब वह आयेंगे, तो हमें सीधे स्वर्ग के राज्य में आरोहित कर लिया जायेगा। यहाँ पर मामला क्या है? मैं बहुत उलझन में था। मुझे अगली बैठक का इंतजार था, जब मैं अपने भाई के साथ इन सवालों पर पूरी तरह से चर्चा कर सकता था।

 

स्रोत: यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए

 

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