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जब तुम परमेश्वर के विचारों और मनुष्यजाति के प्रति उसके रवैये को सचमुच में समझने में समर्थ होते हो, और जब तुम सचमुच में प्रत्येक प्राणी के प्रति परमेश्वर की भावनाओं और चिंता को समझ सकते हो, तो तुम सृजनकर्ता के द्वारा सृजित हर एक मनुष्य के ऊपर व्यय की गई लगन और प्रेम को समझने में भी समर्थ हो जाओगे।
मत्ती 18:12-14 तुम क्या सोचते हो? यदि किसी मनुष्य की सौ भेड़ें हों, और उनमें से एक भटक जाए, तो क्या वह निन्यानबे को छोड़कर, और पहाड़ों पर जाकर, उस भटकी हुई को न ढूँढ़ेगा? और यदि ऐसा हो कि उसे पाए, तो मैं तुम से सच कहता हूँ कि वह उन निन्यानबे भेड़ों के लिये जो भटकी नहीं थीं, इतना आनन्द नहीं करेगा जितना कि इस भेड़ के लिये करेगा। ऐसा ही तुम्हारे पिता की जो स्वर्ग में है यह इच्छा नहीं कि इन छोटों में से एक भी नष्‍ट हो।
जिस समय से प्रभु यीशु ने काम करना आरम्भ किया तब से, वह पहले से ही मनुष्यों के जीवन स्वभाव पर काम शुरू कर रहा था, परन्तु वह व्यवस्था की नींव पर आधारित था।
पहला अंश पुनरूत्थान के बाद प्रभु यीशु के रोटी खाने और पवित्रशास्त्र को समझाने का वर्णन है, और दूसरा अंश प्रभु यीशु के भुनी हुई मछली खाने का वर्णन है।
(मत्ती12:6-8) पर मैं तुम से कहता हूँ कि यहाँ वह है जो मन्दिर से भी बड़ा है। यदि तुम इसका अर्थ जानते, 'मैं दया से प्रसन्न होता हूँ, बलिदान से नहीं,' तो तुम निर्दोष को दोषी न ठहराते। मनुष्य का पुत्र तो सब्त के दिन का भी प्रभु है।