समझदार कुँवारियों का दृष्टान्त
प्रभु यीशु ने कहा, "तब स्वर्ग का राज्य उन दस कुँवारियों के समान होगा जो अपनी मशालें लेकर दूल्हे से भेंट करने को निकलीं। उनमें पाँच मूर्ख और पाँच समझदार थीं। मूर्खों ने अपनी मशालें तो लीं, परन्तु अपने साथ तेल नहीं लिया। परन्तु समझदारों ने अपनी मशालों के साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी भर लिया। जब दुल्हे के आने में देर हुई, तो वे सब उँघने लगीं, और सो गई। 'आधी रात को धूम मची, कि देखो, दूल्हा आ रहा है, उससे भेंट करने के लिये चलो। तब वे सब कुँवारियाँ उठकर अपनी मशालें ठीक करने लगीं। और मूर्खों ने समझदारों से कहा, 'अपने तेल में से कुछ हमें भी दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझ रही हैं।' परन्तु समझदारों ने उत्तर दिया कि कही हमारे और तुम्हारे लिये पूरा न हो; भला तो यह है, कि तुम बेचनेवालों के पास जाकर अपने लिये मोल ले लो। जब वे मोल लेने को जा रही थीं, तो दूल्हा आ पहुँचा, और जो तैयार थीं, वे उसके साथ विवाह के घर में चलीं गई और द्वार बन्द किया गया। इसके बाद वे दूसरी कुँवारियाँ भी आकर कहने लगीं, 'हे स्वामी, हे स्वामी, हमारे लिये द्वार खोल दे।' उसने उत्तर दिया, कि मैं तुम से सच कहता हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता'" (मत्ती 25:1-12)।
क्या बाइबल पढना, अक्सर प्रार्थना करना, मेहनत करना और सतर्कता से प्रभु के आगमन का इंतज़ार करना एक व्यक्ति को समझदार कुँवारी बनाता है?
ईमानदारी से प्रभु पर विश्वास करने वाले प्रत्येक भाई-बहन, एक समझदार कुँवारी होने की उम्मीद करते हैं जो अंत के दिनों में, हमारे उद्धारकर्ता, प्रभु यीशु की वापसी का स्वागत कर सकेंगे और उनके साथ भोज में शामिल हो सकेंगे। इसके लिए, कुछ लोग अक्सर बाइबल पढ़ते हैं, प्रार्थना करते हैं, सतर्क और तैयार रहते हैं, कुछ लोग कड़ी मेहनत करते हैं, दान करते हैं, स्वयं को खपाते हैं, कुछ लोग समय पर सभाओं में भाग लेते हैं और प्रभु के आगमन की चौकस होकर प्रतीक्षा करते हैं। हम में से हर एक खुद को तैयार करता है, खुद को खपाता है और अपने तरीके से इंतज़ार करता है। हम दृढ़ता से मानते हैं कि हम समझदार कुंवारियाँ हैं और हम निश्चित रूप से प्रभु की वापसी का स्वागत करने में सक्षम होंगे। और फिर भी, आजकल, दुनिया भर में अकाल, महामारियों और भूकंपों की अधिक से अधिक घटनाएं हो रही हैं, हर समय युद्ध हो रहे हैं और अक्सर कौतुक उत्पन्न करने वाले रक्तिम चंद्रमा प्रकट हो रहे हैं; प्रभु की वापसी के सभी शकुन मूल रूप से पूर्ण हो चुके हैं और, जैसा कि उम्मीद की जानी चाहिए, प्रभु को वापस लौटना चाहिए। हम इतने सालों तक सतर्क और तैयार रहे हैं, तो ऐसा कैसे है कि हमने अब तक प्रभु का स्वागत नहीं किया है? कुछ भाई-बहन चिंता किये बिना नहीं रह पाते: "क्या इस तरह से हमारा तेल तैयार करना प्रभु की इच्छा के विपरीत है? वास्तव में समझदार कुँवारियाँ कौन हैं? और मूर्ख कुँवारियाँ कौन हैं? समझदार कुँवारियों को परमेश्वर का स्वागत कैसे करना चाहिए और मेम्ने के विवाह-भोज में शामिल होने के लिए तेल कैसे तैयार करना चाहिए?"
समझदार कुँवारियाँ कौन हैं?
इन प्रश्नों के संबंध में, हम उत्तर उन लोगों पर नज़र डाल कर पा सकते हैं जिन्होंने प्रभु यीशु को उस मसीहा के रूप में स्वीकार किया जिसकी भविष्यद्वाणी की गयी थी और उन लोगों पर जिन्होंने प्रभु यीशु के उद्धार को दो हजार साल पहले खो दिया था, जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने के लिए दुनिया में आए थे। व्यवस्था के युग के अंत में, अधिक से अधिक लोगों को व्यवस्था द्वारा मृत्यु दंड दिए जाने का खतरा था क्योंकि वे व्यवस्था बनाये रखने में असमर्थ थे। मनुष्य को व्यवस्था द्वारा दोषी ठहराए जाने और शापित होने से बचाने के लिए, परमेश्वर ने प्रभु यीशु के रूप में देहधारण किया और छुटकारे का कार्य किया, उन्होंने मनुष्य को, "मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है" (मत्ती 4:17) का पथ दिया और उन्होंने कई चमत्कार किए, जैसे हवाओं और समुद्र को शांत करना, पाँच रोटियाँ, दो मछलियों से पाँच हज़ार लोगों को खिलाना और एक वचन से मृत लोगों को वापस लाना। जो सच में सत्य की तलाश करते और जो परमेश्वर के प्रकट होने के लिए तरसते थे, जैसे कि पतरस, यूहन्ना और मत्ती, उन्होंने प्रभु यीशु के कार्य और वचनों में परमेश्वर के अधिकार और शक्ति को पहचाना। इसलिए उन्होंने प्रभु को उस मसीहा के रूप में पहचाना जिसकी आने की भविष्यवाणी की गई थी, और इसलिए उन्होंने प्रभु का अनुसरण किया और उनका उद्धार प्राप्त किया। इसके अलावा, सामरी स्त्री ने प्रभु को उसके दिल में दफन राज़ को उजागर करते हुए सुना। उसने महसूस किया कि केवल परमेश्वर ही व्यक्ति के सभी गहरे रहस्यों को प्रकाश में ला सकते हैं, और इस प्रकार उसने पहचाना कि प्रभु यीशु मसीहा हैं, मसीह हैं। इन लोगों ने प्रभु यीशु के वचनों में परमेश्वर की वाणी सुनी, और उन्होंने प्रभु यीशु को स्वयं परमेश्वर के रूप में पहचाना—वे समझदार कुँवारियाँ थे, और वे वही थे जिन्होंने दूल्हे का स्वागत किया और उनके साथ भोज में भाग लिया। जहाँ तक मुख्य याजकों, शास्त्रियों और फरीसियों की बात है, तो भले ही वे बाइबल के अच्छे जानकार थे, भले ही उन्होंने दूर-दूर तक सुसमाचार का प्रचार किया था, बहुत दुख झेले और बड़ी कीमत अदा की थी, लेकिन वे अभिमानी, अहंकारी थे और वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से यह मानते हुए चिपके रहते थे कि कोई व्यक्ति जिसे मसीहा नहीं कहा जाता है, संभवतः वह परमेश्वर नहीं हो सकता है। प्रभु यीशु द्वारा कहे गए वचनों में अधिकार और शक्ति थी, फिर भी न केवल फरीसियों ने उनके वचनों के भीतर सत्य की तलाश नहीं की, बल्कि उन्होंने प्रभु यीशु के वचनों में दोष खोजने की कोशिश की, उन्होंने आलोचना की, ईशनिंदा की, यहूदी आस्थावानों को धोखा दिया, उन्हें बाधित किया कि वे प्रभु का अनुसरण न करें। यहाँ तक कि प्रभु यीशु को क्रूस पर चढ़ाने के लिए रोमन अधिकारियों से सांठ-गाँठ करने की हद तक भी चले गये। इस प्रकार, वे ऐसे लोग बन गए जो परमेश्वर में विश्वास तो करते थे, फिर भी उनका विरोध करते थे, उन्होंने परमेश्वर के स्वभाव का अपमान किया और वे परमेश्वर के क्रोध और दंड के अधीन हो गए।
इससे, हम देख सकते हैं कि समझदार कुँवारियाँ इसलिए समझदार थीं क्योंकि उन्होंने परमेश्वर वाणी को सुनने पर ध्यान रखा था, एक बार जब वे परमेश्वर की वाणी को समझने में सक्षम हो गये, तो वे सत्य को स्वीकार करने और परमेश्वर के प्रकटन का स्वागत करने में सक्षम हो गये। मूर्ख कुँवारियाँ इसके बिल्कुल विपरीत थीं। उन्होंने परमेश्वर की वाणी को नहीं पहचाना, इसलिए भले ही उन्होंने सत्य कथनों को सुना, फिर भी वे तलाश करने के लिए आगे नहीं बढ़े, उन्होंने उन्हें स्वीकार नहीं किया, और वे उनके अधीन नहीं हुये। वे बस अपनी ही धारणाओं और कल्पनाओं पर अड़े रहे और उन्होंने परमेश्वर के प्रकटन और कार्य को अस्वीकार कर दिया, और इस प्रकार, अंततः, उन्होंने परमेश्वर के उद्धार को खो दिया। यह पर्याप्त रूप से साबित करता है कि एक व्यक्ति परमेश्वर में कितने समय से विश्वास करता है, उसे बाइबल का कितना ज्ञान है, कोई कितना काम और मेहनत करते हुए प्रतीत होता है या कितनी पीड़ा सहता है और खुद को खपाता है, इन बातों की आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि कोई व्यक्ति समझदार कुँवारी बन सकता या नहीं, इसके बजाय यह इस आधार पर कहा जा सकता है कि क्या कोई परमेश्वर की वाणी को सुनने का ध्यान रखता है और क्या उसे समझ सकता है। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा है: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)। अगर हम अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के भीतर रहते हैं और हम मानते हैं कि हमें बस बाइबल पढ़ना, प्रार्थना करना, सतर्क व् तैयार रहना, सभाओं में जाना, चौकस रहना, प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करना, दान करना और खुद को खपाना है, लेकिन हम परमेश्वर की वाणी को सुनने पर ध्यान न दें और सत्य कथन को सुनकर भी उनकी तलाश या जाँच न करें, तो हम मूर्ख कुंवारियां बनने के लिए उपयुक्त होंगे और हम प्रभु द्वारा त्याग दिए जाएंगे!
अंत के दिनों में प्रभु की वापसी को लेकर समझदार कुँवारियों का क्या दृष्टिकोण होना चाहिए?
हम अब प्रभु यीशु की वापसी के महत्वपूर्ण समय में हैं। प्रभु यीशु ने कहा है, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। "आधी रात को धूम मची, कि देखो, दूल्हा आ रहा है, उससे भेंट करने के लिये चलो" (मत्ती 25:6)। "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा, और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)। और प्रकाशितवाक्य के अध्याय 2 और 3 में कई बार भविष्यवाणी की गयी है "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।" इससे, हम देख सकते हैं कि, जब प्रभु यीशु अंत के दिनों में वापस आएंगे, तो उनके पास अभी भी कलीसियाओं से कहने के लिए चीजें हैं और वे सरे सत्य को समझने और उसमें प्रवेश करने के लिए हमारी अगुआई करेंगे। दूसरे तरीके से कहें तो, जब प्रभु यीशु वापस आएंगे, तो वह अपनी भेड़ों की तलाश करने के लिए अपने कथनों का उपयोग करेंगे। समझदार कुंवारियाँ हृदय और आत्मा दोनों से युक्त होती हैं, और जब वे किसी को प्रभु यीशु की वापसी की खबर की गवाही देते हुए सुनती हैं, तो वे सकारात्मक और सक्रिय रूप से खोज करने और परमेश्वर की वाणी सुनने में सक्षम होती हैं। खोज और जाँच के दौरान, समझदार कुंवारियाँ प्रभु की वाणी को पहचानने में सक्षम होती हैं और इस तरह, वे अपने दिल के द्वार खोलने, प्रभु का स्वागत करने और प्रभु के साथ भोज में शामिल होने में सक्षम होती हैं।
परमेश्वर की वाणी को कैसे पहचानें
जब हम प्रभु की वापसी का समाचार सुनते हैं, तो, हम प्रभु की वाणी को कैसे पहचान सकते हैं? परमेश्वर की वाणी को पहचानने के कौन से सिद्धांत हैं और किन महत्वपूर्ण बिंदुओं को हमें समझना चाहिए?
1. परमेश्वर के वचन उनके स्वभाव की अभिव्यक्तियाँ हैं और उनमें सामर्थ्य और अधिकार दोनों होता है
जैसा कि हम सभी जानते हैं, शुरुआत में, परमेश्वर ने दुनिया और सभी चीजों को बनाने के लिए वचनों का इस्तेमाल किया था। उनके एक वचन कहते ही वो पूरा हो जाता है। परमेश्वर बोलते हैं और वो हो जाता है, वह आज्ञा देते हैं और वह डट कर खड़ा होता है—यह परमेश्वर के वचनों का सबसे स्पष्ट लक्षण है। पुराने नियम के समय में, परमेश्वर ने वादा किया था कि अब्राहम के वंशज आकाश में तारे के समान या रेत के दाने के समान होंगे, और वैसा ही हुआ। परमेश्वर जो कुछ कहते हैं वह पूरा होगा, यह उनके वचनों का अधिकार और सामर्थ्य है। यहोवा परमेश्वर ने कहा, "जो मुझसे बैर रखते हैं उनके बेटों, पोतों, और परपोतों को पितरों का दण्ड दिया करता हूँ, और जो मुझसे प्रेम रखते और मेरी आज्ञाओं को मानते हैं उन हजारों पर करुणा किया करता हूँ" (व्यवस्थाविवरण 5:9-10)। प्रभु यीशु ने कहा: "मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे" (मत्ती 18:3)। "इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि मनुष्य का सब प्रकार का पाप और निन्दा क्षमा की जाएगी, पर पवित्र आत्मा की निन्दा क्षमा न की जाएगी। जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहेगा, उसका यह अपराध क्षमा किया जाएगा, परन्तु जो कोई पवित्र आत्मा के विरोध में कुछ कहेगा, उसका अपराध न तो इस लोक में और न ही आनेवाले में क्षमा किया जाएगा" (मत्ती 12:31-32)। "परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा और जो कोई अपने भाई को निकम्मा कहेगा वह महासभा में दण्ड के योग्य होगा; और जो कोई कहे 'अरे मूर्ख' वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा" (मत्ती 5:22)। परमेश्वर के वचन अधिकार और सामर्थ्य वहन करते हैं, वे परमेश्वर के स्वभाव को वहन करते हैं। परमेश्वर के वचनों से, हम न केवल यह देख सकते हैं कि उनके वचन सभी चीजों पर शासन और प्रशासन करते हैं, बल्कि हम यह भी देख सकते हैं कि उनके वचन लोगों से वादे करते हैं और आशीष देते हैं, वे मनुष्य के विद्रोह और अवज्ञा को शाप भी दे सकते हैं। जो लोग परमेश्वर को प्यार करते हैं, उनके प्रति वो दया और प्रेम से भरे होते हैं, और जो लोग उनकी अवहेलना करते हैं, उनके लिए वे प्रताप और क्रोध से भर जाते हैं, इस प्रकार हमें अपना धर्मी स्वभाव देखने देते हैं जो कोई अपमान नहीं सहता है। इससे, हम देख सकते हैं कि परमेश्वर के सभी वचन उसके स्वभाव और स्वरूप की अभिव्यक्तियाँ हैं, इससे भी अधिक, वे सृष्टिकर्ता के अद्वितीय अधिकार और सामर्थ्य को धारण करते हैं। कोई भी इंसान परमेश्वर के वचनों को नहीं बोल सकता है, और अगर हम परमेश्वर के वचनों के इस लक्षण को समझ सकते हैं, तो हम परमेश्वर की वाणी को सही ढंग से पहचान पाएंगे।
2. परमेश्वर के वचन उनके प्रबंधन कार्य के रहस्य को उजागर कर सकते हैं
परमेश्वर के कथन अनिवार्य रूप से उनके प्रबंधन कार्य के रहस्यों को प्रकट करने में सक्षम होंगे। उदाहरण के लिए, पुराने नियम में भविष्यवाणी की गई थी कि एलिय्याह आएगा, लेकिन जब वह आया तो किसी ने भी उसे नहीं पहचाना। केवल जब प्रभु यीशु ने यह कहते हुए, "और चाहो तो मानो, एलिय्याह जो आनेवाला था, वह यही है" (मत्ती 11:14), रहस्य का खुलासा किया तभी लोगों ने पहचाना कि यूहन्ना बप्तिस्ता ही नबी एलिय्याह है। इसके अलावा प्रभु यीशु ने कहा: "मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है" (मत्ती 4:17)। "फिर स्वर्ग का राज्य उस बड़े जाल के समान है, जो समुद्र में डाला गया, और हर प्रकार की मछलियों को समेट लाया। और जब जाल भर गया, तो मछुए किनारे पर खींच लाए, और बैठकर अच्छी-अच्छी तो बरतनों में इकट्ठा किया और बेकार-बेकार फेंक दी। जगत के अन्त में ऐसा ही होगा; स्वर्गदूत आकर दुष्टों को धर्मियों से अलग करेंगे, और उन्हें आग के कुण्ड में डालेंगे। वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा" (मत्ती 13:47-50)। "जो मुझसे, 'हे प्रभु, हे प्रभु' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21) केवल जब प्रभु यीशु ने स्वर्ग के राज्य के रहस्यों का अनावरण किया, तभी हमें समझ में आया कि केवल वे जो वास्तव में पश्चाताप करते हैं और जो स्वर्ग के पिता की इच्छा पूरी करते हैं, वे स्वर्गीय राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। दूसरी ओर जो दुष्ट वास्तव में पश्चाताप नहीं करते हैं, वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने में असमर्थ होंगे। इसके अलावा, प्रभु यीशु ने यह भी भविष्यवाणी की थी कि वह वापस आएंगे, और मनुष्य का पुत्र अंत के दिनों में न्याय का कार्य करेगा और आपदाओं के आने से पहले लोगों के एक समूह को विजेता में परिपूर्ण करेगा। उन्होंने मसीह के राज्य के प्रकट होने जैसी बातों की भविष्यवाणी भी की थी। प्रभु यीशु हमें इन रहस्यों के बारे में बताने में सक्षम क्यों थे? ऐसा इसलिए था क्योंकि प्रभु यीशु स्वयं परमेश्वर थे, और केवल परमेश्वर ही जानते हैं कि स्वर्ग का राज्य किस प्रकार के लोगों को चाहता है, अंत के दिनों में परमेश्वर किस कार्य को करेंगे, और वह अंततः मानवजाति के उद्धार से क्या हासिल करेंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि, केवल परमेश्वर के कथनों से परमेश्वर के प्रबंधन कार्य के रहस्यों को प्रकट किया जा सकता है और कोई भी मनुष्य उन्हें प्राप्त नहीं कर सकता है। यह परमेश्वर की वाणी का लक्षण है।
3. परमेश्वर के वचन ही वो सत्य हैं जो हमारी असल समस्याओं का समाधान कर सकते हैं और हमें अभ्यास का पथ दिखा सकते हैं
प्रभु यीशु ने कहा "मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ" (यूहन्ना 14:6)। प्रत्येक वचन जो परमेश्वर बोलते हैं वो सत्य है और परमेश्वर जीवंत जल का झरना हैं जो सत्य को व्यक्त करता है, भ्रष्ट मानवजाति के तौर पर हमारी आवश्यकताओं के अनुसार हमें सत्य के एक स्थिर प्रवाह की आपूर्ति देते हैं और हमें आगे बढ़ने देते हैं। उदाहरण के लिए, व्यवस्था के युग के अंत में, लोग व्यवस्था या आज्ञाओं को बनाये नहीं रख पा रहे थे, और सभी पर व्यवस्था द्वारा दोषी ठहराए जाने और मौत के घाट उतारे जाने का खतरा मंडरा रहा था। परमेश्वर व्यक्तिगत रूप से प्रभु यीशु के रूप में देहधारण कर प्रकट हुए और अपना कार्य किया। पुराने नियम के व्यवस्था की नींव पर, उन्होंने पश्चाताप का मार्ग व्यक्त किया और अपने अनुयायियों को अभ्यास का विशिष्ट पथ दिखाया जिसकी उन्हें ज़रूरत थी। उदाहरण के लिए प्रार्थना के संबंध में, प्रभु यीशु ने कहा: "परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसकी आराधना करनेवाले आत्मा और सच्चाई से आराधना करें" (यूहन्ना 4:24)। "प्रार्थना करते समय अन्यजातियों के समान बक-बक न करो; क्योंकि वे समझते हैं कि उनके बार-बार बोलने से उनकी सुनी जाएगी" (मत्ती 6:7)। एक दूसरे के साथ सामंजस्य बिठाने के विषय में प्रभु यीशु ने कहा, "क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या लाभ होगा? क्या चुंगी लेनेवाले भी ऐसा ही नहीं करते? और यदि तुम केवल अपने भाइयों को ही नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते? इसलिए चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है" (मत्ती 5:46-48)। "दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए। क्योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा; और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा" (मत्ती 7:1-2)। प्रभु यीशु द्वारा कहे गए वचनों से, हमने एक नया मार्ग प्राप्त किया जो व्यवस्था से ऊपर था और हमारी सभी वास्तविक समस्याओं और कठिनाइयों का समाधान हो गया। साथ ही, हमें अभ्यास का एक अधिक सटीक मार्ग भी मिला, और जब हम प्रभु की शिक्षाओं के अनुसार अभ्यास करते हैं, तब हम पवित्र आत्मा के कार्य और मार्गदर्शन का आनंद लेने में सक्षम होते हैं, और परमेश्वर के साथ हमारा संबंध निकटता का हो जाता है। इसलिए यह स्पष्ट है कि प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त किए गए ये वचन वे थे जिनकी लोगों को अनुग्रह के युग में आवश्यकता थी और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वे हमारे जीवन की आपूर्ति बन गए। तो परमेश्वर ने हमारी अगुआई करने के लिए अंत के दिनों में कौन से वचन व्यक्त करेंगे? इस प्रश्न को समझने के लिए, एक तथ्य है जिससे हमें सबसे पहले अवगत होना होगा: प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य किया। भले ही हमें प्रभु में हमारे विश्वास के कारण क्षमा कर दिया गया है, लेकिन हमारी पापी प्रकृति अभी भी अनसुलझी है, इसलिए हम अभी भी बार-बार पाप करने में सक्षम हैं और परमेश्वर की शिक्षाओं को व्यवहार में लाने में असमर्थ है। प्रभु पवित्र है, और जब तक हमारी पापी प्रकृति को दूर नहीं किया जाता है, तब तक हमारे पास प्रभु की प्रशंसा प्राप्त करने का कोई तरीका नहीं है। यही कारण है कि प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि वे अंत के दिनों में अपने वचनों को बोलने और मनुष्य को शुद्ध करने और बचाने के लिए कार्य करने आयेंगे। प्रभु यीशु ने कहा, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। "यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता, क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है* और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैंने कहा है, वह अन्तिम दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:47-48)। इब्रानियों के अध्याय 9:28 में लिखा है, "वैसे ही मसीह भी बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक बार बलिदान हुआ और जो लोग उसकी प्रतीक्षा करते हैं, उनके उद्धार के लिये दूसरी बार बिना पाप के दिखाई देगा।" हम इससे देख सकते हैं कि, अंत के दिनों में, परमेश्वर सत्य का उपयोग न्याय करने, शुद्ध करने और हमें पापों के बंधन से बचाने के लिए करेंगे। दूल्हे की आवाज़ सुनने के लिए जो समझदार कुंवारीयां उत्सुकता से इंतजार कर रहे हैं, उन्हें कुछ हद तक प्रेरित होना चाहिए। यदि वे किसी को यह उपदेश देते हुए सुनते हैं कि प्रभु अपने न्याय का कार्य करने के लिए लौट आए हैं, तो, उन्हें बहुत ध्यान से सुनना चाहिए। जब तक वचन उनके भ्रष्टाचार को उजागर कर सकते हैं, उन्हें पाप से मुक्त होने का रास्ता दिखा सकते हैं और उन्हें जीवन प्रदान कर सकते हैं, तब तक ये वचन वास्तव में परमेश्वर की वाणी होंगे।
4. परमेश्वर मनुष्य के अंतरतम हृदय की जाँच करते हैं और वे मानवजाति की भ्रष्टता को अच्छे से समझ सकते और उसे उजागर कर सकते हैं
परमेश्वर सृष्टिकर्ता हैं और उनका आत्मा सभी चीजों की जाँच करता है। परमेश्वर हमें अपनी हथेली की तरह जानते हैं, और केवल परमेश्वर के वचन हमारे भ्रष्टाचार के स्रोत और हमारे स्वभाव के सार को उजागर कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, प्रभु यीशु देहधारी परमेश्वर थे, जिसका अर्थ है कि वे स्वर्ग में परमेश्वर का आत्मा थे जो एक साधारण देह के रूप में साकार हुए थे। इसलिए, प्रभु यीशु द्वारा कहे गए वचन हमारे मानवीय सार को तुरंत उजागर करने में सक्षम थे। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि उस समय के फरीसी, आम यहूदी लोगों की आंखों में पवित्रता के साथ परमेश्वर की सेवा करते थे। लेकिन प्रभु यीशु ने मनुष्य के अंतरतम हृदय की जाँच की, और उन्होंने फरीसियों की प्रकृति के सार को देखा, जो अधर्म से प्रेम व सत्य से घृणा करता था, और उन्होंने फरीसियों को यह कहकर उजागर किया: "हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय! तुम चूना फिरी हुई कब्रों के समान हो जो ऊपर से तो सुन्दर दिखाई देती हैं, परन्तु भीतर मुर्दों की हड्डियों और सब प्रकार की मलिनता से भरी हैं" (मत्ती 23:27)। "हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के विरोध में स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो आप ही उसमें प्रवेश करते हो और न उसमें प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो" (मत्ती 23:13)। "हे साँपो, हे करैतों के बच्चों, तुम नरक के दण्ड से कैसे बचोगे?" (मत्ती 23:33)। परमेश्वर मनुष्य के अंतरतम हृदय की जाँच करते हैं और उस पाप को देख सकते हैं जो हमारे हृदयों के भीतर है। वह फरीसियों की उस प्रकृति को जानते थे, जो सत्य से घृणा करता था और जो उनसे घृणा करता था, वह जानते थे कि वे मसीह विरोधी हैं जिन्होंने स्वयं को उनके विरुद्ध खड़ा किया है। इसलिए प्रभु यीशु ने फरीसियों के दुष्ट कामों को उजागर किया और उनके पापों के लिए उनकी निंदा की। इसलिए हम देख सकते हैं कि परमेश्वर सत्य है और परमेश्वर का वचन प्रकाश है, और सारे अंधेरे और बुराई उनके वचनों से प्रकट होनी ही चाहिए! अंत के दिनों में, परमेश्वर हमारी सभी अधार्मिकताओं का न्याय करने के लिए सत्य को व्यक्त करते हैं और उन्हें हमारे सभी शैतानी भ्रष्टतापूर्ण स्वभावों को उजागर करना होगा, जिनसे हम अनभिज्ञ हैं, ताकि हमें अपने स्वयं के भ्रष्टाचार का पता चल सके। केवल समझदार कुंवारियों की तरह होने और परमेश्वर का आदर करने और सत्य को स्वीकार करने वाला हृदय पा कर ही हम अंत के दिनों में परमेश्वर का उद्धार प्राप्त कर पाएंगे।
ऊपर वे मुख्य सिद्धांत और मार्ग हैं जिनसे हम परमेश्वर की वाणी को समझ सकते हैं। इन सिद्धांतों को समझने-बूझने के द्वारा, जब हम किसी को यह गवाही देते हुए सुनते हैं कि प्रभु लौट आए हैं और हमारे तक उन कथनों को लाए हैं जो पवित्र आत्मा कलीसियाओं को बोलता है, जब हम सकारात्मक और सक्रिय रूप से इसकी खोज करते हैं और अपने दिल से इन वचनों को सुनते हैं, तब हम परमेश्वर की वाणी को सही ढंग से पहचान सकेंगे और प्रभु की वापसी का स्वागत कर सकेंगे। इसलिए, यदि हम समझदार कुंवारी बनने की इच्छा रखते हैं, तो हमें अपनी अवधारणाओं और कल्पनाओं को त्यागना चाहिए, परमेश्वर की वाणी को सुनने पर ध्यान देना चाहिए, परमेश्वर के कथन के लक्षणों के अनुसार परमेश्वर की वाणी को पहचानना चाहिए, और फिर उसे स्वीकार करना, उसके अधीन होना और उसका पालन करना चाहिए और मेम्ने के नक्शेकदम का करीबी से अनुसरण करना चाहिए। केवल ऐसा करने से ही हम जीवन के जीवित जल की निरंतर आपूर्ति का आनंद ले पाएंगे और मेम्ने के विवाह-भोज में भाग ले सकेंगे। यदि हम लौटे हुए प्रभु के कथन सुन कर भी उन्हें नहीं खोजते हैं, उन्हें स्वीकार नहीं करते हैं, बल्कि अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से बंधे रहते हैं, यह मानते हुए कि जब तक हम बाइबल पढ़ते हैं, प्रार्थना करते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं प्रभु तब तक हम प्रभु यीशु का स्वागत करने में सक्षम होंगे, और हम अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की तलाश या जांच नहीं करते हैं, तो हम मूर्ख कुंवारियों के जैसे हो जाएंगे, और हम हमेशा के लिए अंत के दिनों के परमेश्वर से उद्धार प्राप्त करने का मौका चूक गए होंगे!
परमेश्वर के प्रबोधन और मार्गदर्शन का धन्यवाद। हम सभी समझदार कुंवारियाँ बन सकें जो प्रभु यीशु की वापसी का स्वागत कर भोज में उनके साथ बैठ कर भाग ले सकती हैं। आमीन!
स्रोत: यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए
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