मसीहा से संबंधित भविष्यवाणियों के प्रति फरीसियों के व्यवहार से हम क्या प्रबुद्धता पा सकते हैं

लियू फेंग, चीन

 

दो हज़ार साल पहले, इस्राएली बड़ी लालसा के साथ मसीहा के आगमन के लिए तरस रहे थे, लेकिन जब प्रभु यीशु अर्थात मसीहा, आखिरकार आ गए, तो फरीसियों ने वास्तव में उन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया, और परिणामस्वरूप, इस्राएलियों को परमेश्वर की सज़ा—इस्राएल के विनाश—के अधीन किया गया। इस कड़वी विफलता को देखते हुए वाकई हमें खुद पर विचार करने की ज़रूरत है: जिन फरीसियों ने पीढ़ियों तक परमेश्वर में विश्वास किया, वो परमेश्वर का विरोध कैसे कर बैठे? अब अंत के दिनों का समय पहले ही आ पहुँचा है, और परमेश्वर की वापसी की भविष्यवाणियां मूल रूप से पूरी हो चुकी हैं। प्रभु के स्वागत के इस महत्वपूर्ण समय में, हम फरीसियों के नक्शेकदम पर चलने से कैसे बच सकते हैं?

जैसा कि हम सभी जानते हैं, व्यवस्था के युग के अंत में सभी इस्राएली, धर्मशास्त्र में भविष्यवाणियों के अनुसार इस बात के लिए तरस रहे थे कि मसीहा आयें और उन्हें बचाएं। उस समय, फरीसियों ने आने वाले मसीहा के बारे में भविष्यवाणियों, "क्योंकि हमारे लिये एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके काँधे पर होगी" (यशायाह 9:6), और "हे बैतलहम एप्रात, यदि तू ऐसा छोटा है कि यहूदा के हजारों में गिना नहीं जाता, तो भी तुझ में से मेरे लिये एक पुरुष निकलेगा, जो इस्राएलियों में प्रभुता करनेवाला होगा; और उसका निकलना प्राचीनकाल से, वरन् अनादि काल से होता आया है" (मीका 5:2), को सुनने के बाद कल्पना करना शुरू किया कि इन भविष्यवाणियों के शाब्दिक अर्थ के आधार पर मसीहा कैसे होंगे। उनके मन में, आने वाले को मसीहा कहा जाना चाहिए था। चूँकि वह शासन करने के लिए आएंगे, इसलिए वह कोई ऐसे व्यक्ति होंगे जो एक शाही महल में जन्म लेंगे, जिसमें एक वीर चरित्र और आधिकारिक चाल-ढाल होगी, जो दाऊद जैसे महान योद्धा के रूप में विकसित होंगे और रोमियों को इस्राएल से बाहर खदेड़ने में अपने लोगों की अगुआई करेंगे और उन्हें रोमियों के उत्पीड़न से बचायेंगे।

 

हालाँकि, भविष्यवाणियों की पूर्ति वैसी नहीं हुई जैसी कि फरीसियों ने कल्पना की थी। जब प्रभु यीशु आए, तो उन्हें न तो मसीहा कहा गया, न ही वे शाही महल में पैदा हुए। इसके बजाय, वह एक गौशाले में पैदा हुए थे, एक गरीब बढ़ई के घर में पले-बढ़े थे। उनका बाहरी रूप उतना राजसी और असाधारण नहीं था जितना कि फरीसी कल्पना करते थे, बल्कि वह तो बहुत ही सामान्य और साधारण था। उन्होंने रोमियों के शासन को उखाड़ फेंकने के लिए इस्राएलियों की अगुआई नहीं की, बल्कि लोगों के बीच पश्चाताप करने के मार्ग का प्रचार करते हुए चले, उन्हें क्षमा और सहिष्णुता का अभ्यास करना और दूसरों को खुद के समान प्यार करना सिखाया। फरीसियों ने अपनी कल्पना के मसीहा के विपरीत, सामान्य और साधारण प्रभु यीशु को देखकर, अपनी-अपनी धारणाओं और कल्पनाओं पर डटे रहना चुना, यह निष्कर्ष निकालते हुए कि वह आने वाले मसीहा नहीं हो सकते, उन्होंने उनकी निंदा और विरोध करने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं दिया। भले ही प्रभु यीशु ने कई चमत्कार किए और कई सत्य व्यक्त किए, जिनसे कई लोगों ने पहचाना कि वह मसीह थे, लेकिन फरीसियों का तलाश करने का ज़रा भी इरादा नहीं था। चाहे प्रभु यीशु का उपदेश कितना ही गहरा हो या उन्होंने कितने ही चमत्कार किए हों, फरीसियों ने उनके कार्य को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया, यहाँ तक कि इस्राएल के लोगों को उनका विरोध करने और उनकी निंदा करने के लिए उकसाया। बाद में, प्रभु यीशु—आये हुए मसीहा—को क्रूस पर चढ़ाने के लिए उन्होंने रोमन सरकार से मिली-भगत भी कर ली, इस तरह एक जघन्य पाप और परमेश्वर के धर्मी स्वभाव का अपमान कर बैठे, और अंततः वे परमेश्वर की सजा—इस्राएल के विनाश—के अधीन हुए।

 

फरीसियों की विफलता वास्तव में हमारे आत्म-मंथन के योग्य है। उन्होंने मसीहा से संबंधित भविष्यवाणियों के साथ अपनी स्वयं की धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर व्यवहार किया, जिसके कारण वे, वो लोग बन गए जिन्होंने मसीहा के आगमन के लिए लंबे समय से लालायित होने पर भी उन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया। हम सभी जानते हैं कि बाइबल में भविष्यवाणियाँ उन चीज़ों के बारे में हैं जिन्हें परमेश्वर भविष्य में पूरा करेंगे, जिन्हें हम मनुष्य नहीं समझ सकते हैं। तो हमें उनके साथ परमेश्वर के दिल के अनुरूप व्यवहार कैसे करना चाहिए? बाइबल कहती है, "हमारे पास जो भविष्यद्वक्ताओं का वचन है, वह इस घटना से दृढ़ ठहरा है और तुम यह अच्छा करते हो, कि जो यह समझकर उस पर ध्यान करते हो, कि वह एक दीया है, जो अंधियारे स्थान में उस समय तक प्रकाश देता रहता है जब तक कि पौ न फटे, और भोर का तारा तुम्हारे हृदयों में न चमक उठे। पर पहले यह जान लो कि पवित्रशास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी की अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती। क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे" (2 पतरस 1:19-21), और "जिस ने हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया, शब्द के सेवक नहीं वरन् आत्मा के; क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्मा जिलाता है" (2 कुरिन्थियों 3:6)। ये पद बताते हैं कि भविष्यवाणियाँ परमेश्वर की ओर से हैं, जिन पर हम अपनी इच्छानुसार टिप्पणी नहीं कर सकते। हम उनकी शाब्दिक रूप से व्याख्या नहीं कर सकते, या उन पर अटकल लगाने या उनके अर्थ को निर्धारित करने के लिए अपनी धारणाओं पर भरोसा नहीं कर सकते हैं, क्योंकि वे केवल परमेश्वर की योजना के अनुसार पूरी होंगी। परमेश्वर का कार्य चमत्कारिक है और उनकी बुद्धि से भरा हुआ है, जिसे हम मनुष्यों द्वारा नहीं समझा जा सकता है। यदि हम भविष्यवाणियों के शाब्दिक अर्थ के आधार पर परमेश्वर के कार्य को परिभाषित करते हैं, तो संभवत: हम परमेश्वर का विरोध कर दें और अंततः अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से नष्ट हो जायें।

 

फरीसियों के विपरीत, ऐसे लोगों का भी एक समूह था जिन्होंने मसीहा की भविष्यवाणियों के प्रति दूसरा दृष्टिकोण अपनाया। प्रभु यीशु को देखकर, जो दिखने में सामान्य और साधारण थे और मसीहा के बारे में उनकी कल्पनाओं के अनुरूप नहीं थे, उन लोगों ने अपनी धारणाओं और कल्पनाओं पर चिपके न रहते हुए प्रभु के वचनों को सुनने पर ध्यान केंद्रित किया, और अंत में उनके वचनों और कार्य के माध्यम से पहचान लिया कि वे ही आने वाले मसीहा थे। शमौन पतरस की तरह जिसने एक बार कहा था, "हे प्रभु, हम किस के पास जाएँ? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं" (यूहन्ना 6:68)। वह इन शब्दों को क्यों कह सका और प्रभु की असलियत को मसीह के रूप में क्यों पहचान पाया? ऐसा इसलिए है क्योंकि उसने पाया कि प्रभु ने जो किया वह पूरी तरह से मनुष्य की क्षमता के परे है, उन्होंने जो कहा उसमें सत्य निहित है, और उनके पास परमेश्वर का सार है और "अनन्त जीवन की बातें" हैं। समारिया की महिला एक और उदाहरण है। जब उसने पहली बार प्रभु यीशु को देखा तो उसे लगा कि वे एक सामान्य यहूदी से अधिक और कुछ नहीं हैं। लेकिन जब उसने उन्हें यह कहते सुना, "क्योंकि तू पाँच पति कर चुकी है, और जिसके पास तू अब है वह भी तेरा पति नहीं" (यूहन्ना 4:18), उसने यह निष्कर्ष निकाला कि वह आने वाले मसीहा हैं और उन पर विश्वास किया, क्योंकि वह जानती थी कि केवल परमेश्वर ही मनुष्य के हृदय के सबसे गहरे हिस्सों को देखते हैं और मनुष्य के अंतरतम रहस्यों को जानते हैं। कई लोग ऐसे भी थे, जो परमेश्वर के चंगाई और दुष्टआत्माओं को भगाने के कृत्यों से, उनके चमत्कार और अद्भुत कर्म करने से पहचान गए कि वह परमेश्वर से आये थे और इस प्रकार उनका अनुसरण किया। इससे यह देखा जा सकता है कि प्रभु के कार्य और वचनों से ही, उन पर विश्वास करने और उनका अनुसरण करने वाले सभी लोगों ने यह स्वीकारा कि वह मसीहा हैं।

 

यह मुझे एक अंश की याद दिलाता है, जो मैंने कभी पढ़ा था, "चूँकि हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज कर रहे हैं, इसलिए यह हमें परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के वचनों, उसके कथनों को तलाशने के योग्य बनाता है—क्योंकि जहाँ कहीं भी परमेश्वर के द्वारा बोले गए नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है और जहाँ कहीं भी परमेश्वर के पदचिह्न हैं, वहाँ परमेश्वर के कर्म हैं। जहाँ कहीं भी परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य, मार्ग और जीवन विद्यमान होता है। परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश में, तुम लोगों ने उन वचनों की उपेक्षा कर दी है कि 'परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है।' और इसलिए, बहुत से लोग, सत्य को प्राप्त करके भी यह नहीं मानते हैं कि उन्हें परमेश्वर के पदचिह्न मिल गए हैं, और वे परमेश्वर के प्रकटन को तो और भी कम स्वीकार करते हैं। कितनी गंभीर ग़लती है!" इन वचनों से यह स्पष्ट है कि सच्चे मार्ग की तलाश करते हुए, हमे परमेश्वर के वचनों और कार्यों को खोजने पर ध्यान लगाना चाहिए, क्योंकि जब तक किसी मार्ग में सत्य की अभिव्यक्ति और परमेश्वर के कथन हैं, तब तक वो सच्चा मार्ग है।

 

भाइयो और बहनो, हम सभी जानते हैं कि प्रभु अंत के दिनों में वापस आयेंगे, क्योंकि बहुत पहले बाइबल में भविष्यवाणी की गयी है, "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा, और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20), "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। प्रकाशितवाक्य की किताब में भी कई जगह उल्लखित है, "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2-3)। इन भविष्यवाणियों से, हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि जब प्रभु लौटेंगे, तो अपने वचनों को बोलेंगे। परमेश्वर की भेड़ें, परमेश्वर की वाणी सुनने में सक्षम हैं। जो लोग परमेश्वर की वाणी सुनकर उनका स्वागत करने के लिए बाहर जाते हैं, वे उनके सिंहासन के सामने आरोहित किये जायेंगे। अब अंत के दिन हैं। प्रभु की वापसी के बारे में भविष्यवाणियां मूल रूप से पूरी हो चुकी हैं और कई लोग खुले तौर पर ऑनलाइन गवाही दे रहे हैं कि प्रभु यीशु लौट आए हैं। प्रभु के आगमन के मामले से पेश आने में, हमें फरीसियों की विफलता से सीखना चाहिए, अपनी धारणाओं और कल्पनाओं को त्याग देना चाहिए, और परमेश्वर की वाणी को सुनने और खोजने के द्वारा बुद्धिमान कुंवारी बनना चाहिए। इसी तरह से हम प्रभु की वापसी का स्वागत कर सकते हैं।

 

स्रोत: यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए

 

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