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परमेश्वर मेरे साथ है: निराशा के बीच एक चमत्कार

झाओ जीहान, चीन

 

जीवन की यात्रा में, हम में से हर एक, कुछ ऐसी असाधारण घटनाओं का अनुभव करता है जो हमारी स्मृतिपटल पर अंकित हो जाते हैं और ये कभी भी नहीं भुलाए जाते हैं। जब मेरे पति की कार दुर्घटनाग्रस्त हुई थी, उस समय के अनुभव ने मुझ पर सबसे गहरी छाप छोड़ी है। उस वक्त किसी को नहीं मालूम था कि वे बच पाएंगे या नहीं, आने वाले दिनों के दौरान मैं पूरी तरह से हैरान-परेशान थी और मुझमें बिल्कुल ताकत नहीं बची थी। लेकिन मेरे लिए जो बात अलग थी, वह यह था कि, परमेश्वर मेरे साथ थे और मेरे पास उनका मार्गदर्शन था, इस प्रकार मेरे पास एक सहारा था, परमेश्वर से प्रार्थना करने और उन पर भरोसा करने के माध्यम से, मैंने अपनी निराशा के बीच एक चमत्कार होते हुए देखा। उस बुरे वक्त के दौरान, मैंने परमेश्वर के अधिकार, संप्रभुता की अधिक समझ और उनके प्रेम की सच्ची सराहना प्राप्त की…

 

13 अगस्त 2014 की शाम, मैं कुछ काम निपटाने के बाद अपने घर जा रही थी, लगभग आधी रात हो चुकी थी। जैसे ही मैं अपने निवास के मुख्य द्वार पर पहुंची, मैंने अपनी सबसे बड़ी बहन, उनके पति और अपनी दूसरी बहन के पति को अप्रत्याशित रूप से वहाँ खड़ा पाया। मुझे ये बहुत अजीब लगा: वे सब इतनी रात को यहाँ क्या कर रहे हैं? इससे पहले कि मैं इसके बारे में कुछ और सोच पाती, मेरी सबसे बड़ी बहन मेरे पास पहुंची और रोते हुए बोली, "जीहान, तुम कहाँ थी? चिंता से हमारा सर चकरा रहा है। तुम्हारे पति की कार दुर्घटनाग्रस्त हो गयी है। हमारे भाई ने फोन किया था, वह चाहता है कि तुम तुरंत अस्पताल पहुँचो।" जब मैंने अचानक ये बुरी खबर सुनी, तो मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ और मैं बस वहीं खड़ा रही। मैंने मन में सोचा: "मेरे पति की कार का एक्सीडेंट हो गया? यह कैसे हो सकता है? रात के खाने के समय वे हमारे बेटे से फोन पर बात कर रहे थे…" मेरे जीजाजी ने मुझे दुर्घटना के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मेरे पति की हालत गम्भीर थी, अगर वे बच गये तो बहुत भाग्यशाली होंगे। 99 प्रतिशत संभावना थी कि वे दिमागी तौर पर मृत होंगे। सुनते हुए मैं बहुत रोयी, मुझे लगा कि आसमान ही गिर पड़ेगा। मुझे कुछ पता नहीं था कि इन सबका सामना कैसे करना है।

 

चूँकि बहुत रात हो चुकी थी, इसलिए हमें शहर के अस्पताल के लिए टैक्सी ढूंढने में कुछ समय लग गया। इसके कारण यह सोचते हुए कि मैं अपने पति को कभी जीवित नहीं देख पाऊंगी, मैं और भी परेशान हो गयी। मैं अभिभूत होकर घबरा रही थी कि मुझे अचानक बाइबल में दर्ज अय्यूब की कहानी याद आई। जब उसकी परीक्षा ली गयी थी, तो उसकी सारी संपत्ति चोरी हो गई थी, उसके बच्चों का दुर्भाग्यपूर्ण अंत हो गया था, और उसका पूरा बदन भयानक फोड़े से घिर गया था। इस परीक्षा ने अय्यूब को बहुत तकलीफ और पीड़ा पहुँचाई थी, लेकिन फिर भी उसके दिल में परमेश्वर थे, और उसने पापमय ढंग से बोलने के बजाय अपने जन्म के दिन को अभिशाप देना पसंद किया। चाहे परमेश्वर प्रदान करे, या छीन ले, वह परमेश्वर के लिए पूरी तरह से आज्ञाकारी था। अय्यूब ने शिकायत का एक भी शब्द मुँह से नहीं निकाला, बल्कि यहोवा के नाम का गुणगान किया और परमेश्वर के लिए मजबूत गवाही दी। और इसलिए, मैंने भी फौरन परमेश्वर से प्रार्थना की: "हे परमेश्वर! जब मैंने अपने पति की कार दुर्घटना के बारे में सुना, तो मैं स्तब्ध रह गई थी, मैं पूरी तरह से हतप्रभ महसूस कर रही थी, मुझे नहीं पता कि वे अभी कैसे हैं। लेकिन जब मैं सोचती हूँ कि कैसे अय्यूब ने आपको श्रद्धा दी और आपके प्रति आज्ञाकारी रहा, तो मैं समझती हूँ कि मुझे उसके जैसा बनने की कोशिश करनी चाहिए और आप पर विश्वास करना चाहिए। हे परमेश्वर! सभी चीजें आपके हाथ में हैं, चाहे मेरे पति के चंगे होने की कोई उम्मीद हो या न हो, मैं आपसे विनती करती हूँ कि आप मेरे दिल को आप पर दोष लगाने से रोकें। मैं आपके आयोजन और व्यवस्था के प्रति समर्पित होना चाहती हूँ, और अपने पति को आपके हाथों में सौंपती हूँ।" प्रार्थना के बाद, मेरा दिल धीरे-धीरे शांत हो गया।

 

थोड़ी देर बाद, मेरे जीजाजी को एक टैक्सी मिल गयी और हमने अस्पताल का रुख किया। उस समय तक, सुबह के 5 बज चुके थे। मेरे पति को गहन चिकित्सा विभाग में भर्ती किया गया था। मैंने जल्दी से एक डॉक्टर खोजा और उससे अपने पति की स्थिति के बारे में पूछा। डॉक्टर ने कहा, "मरीज की चोटें बहुत गंभीर हैं। अगर वो बच भी गया था 99 प्रतिशत सम्भावना है कि वह दिमागी तौर पर मृत होगा। आपको इस संभावना के लिए खुद को तैयार रखना चाहिए और इलाज के लिए कम से कम 200 हज़ार युआन का इंतजाम कर लेना चाहिए।" यह सुनकर मैं तो लगभग बेहोश ही हो गयी। मुझे बहुत चिंता होने लगी: "मेरे पति जीवित रहेंगे ये निश्चित नहीं है, और इलाज में इतना अधिक खर्च होगा। अगर ऐसा होता है कि उनका उपचार काम न आया, तो न केवल मैं अपने पति को खो दूंगी, बल्कि मैं वह सारा पैसा भी व्यर्थ में गँवा दूँगी। हमारे परिवार के लिए रोजीरोटी कमाने वाले व्यक्ति के बिना, मेरा बेटा और मैं कैसे काम कर पाएंगे? अगर मेरे पति सचमुच दिमागी रूप से मृत हो गए, तो मैं इस परिवार को कैसे चला पाऊंगी?" ठीक उस समय, मुझे ऐसा लगा कि मुझ पर ज़बरदस्त बोझ आ पड़ा हो, जो मुझे इतनी ज़ोर से दबा रहा था कि मैं साँस नहीं ले पा रही थी। मैं पूरी तरह से असहाय महसूस कर रही थी, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करना है। मेरी आंखों के सामने अँधेरा छा गया, मैं दीवार के सहारे धीरे-धीरे नीचे बैठ गयी।

अपनी असहाय अवस्था में, मैं अपना दर्द केवल परमेश्वर से बाँट सकती थी। इसलिए, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा, "हे परमेश्वर! मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है। इस समस्या के पड़ने से मैं बहुत कमज़ोर हो गयी हूँ, मुझे नहीं पता कि मुझे क्या करना है। हे परमेश्वर! कृपया मुझे प्रबुद्ध करें और राह दिखाएं।" प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा, "शेष सभी चीजों के साथ, मनुष्य चुपचाप और अनजाने में परमेश्वर से मिठास और बारिश और ओस द्वारा पोषित होता है। शेष सभी चीजों की तरह, मनुष्य अनजाने में परमेश्वर के हाथ की योजना के अधीन रहता है। मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर के हाथ में हैं, और उसका पूरा जीवन परमेश्वर की दृष्टि में है। भले ही तुम यह मानो या न मानो, कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीजों को इसी तरीके से संचालित करता है" ("परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है")। हाँ, परमेश्वर ने आकाश, पृथ्वी और सभी चीजों का निर्माण किया है, और उन्होंने हमें जीवन भी दिया है। परमेश्वर हमें वह सब कुछ प्रदान करते हैं जिसकी हमें आवश्यकता होती है, और वह हम में से प्रत्येक की नियति की व्यवस्था और उस पर राज करते हैं। जीवन और मृत्यु तो बस उन्हीं के हाथों में है, क्योंकि यह परमेश्वर का अधिकार है। मेरे जैसे सृजित प्राणी का अपने भविष्य और मेरी नियति पर कोई नियंत्रण नहीं है, इसलिए मुझे सब कुछ परमेश्वर के हाथों में सौंप देना चाहिए और उनकी संप्रभुता और व्यवस्था को समर्पित होना चाहिए। फिर मैंने उस समय के बारे में सोचा जब मूसा ने इस्राएलियों को मिस्र से बाहर निकाला था। जब उन लोगों ने जंगल में प्रवेश किया और उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था, तो यहोवा ने स्वर्ग से मन्ना गिराया और उन्हें खाने के लिए बटेर उपलब्ध करवाए, और यहोवा ने उनसे वादा किया कि वह उन्हें हर दिन खाने के लिए पर्याप्त भोजन देगा। फिर भी कुछ को परमेश्वर पर भरोसा नहीं था, वे डरते थे कि अगले दिन उन्हें भोजन नहीं मिलेगा। इसलिए, उन्होंने अगले दिन खाने के लिए कुछ मन्ना बचा लिया, लेकिन जब अगला दिन आया, तो उन्होंने पाया कि मन्ना खाने लायक नहीं रह गया था। इससे मुझे समझ आया कि परमेश्वर वो सृष्टिकर्ता हैं जो मानवजाति की आपूर्ति और पोषण करते हैं, और जब तक हम ईमानदारी से उन पर विश्वास करते हैं और उनका पालन करते हैं, तब तक हमारे लिए उनका प्रावधान कभी नहीं सूखेगा। लेकिन फिर भी लोगों को परमेश्वर में विश्वास नहीं है और वे हमेशा अपने हितों और भविष्य के लिए योजना बनाने की चिंता में लगे रहते हैं। इस बिंदु पर, मैंने आत्म-अवलोकन के माध्यम से महसूस किया कि मुझे परमेश्वर में सच्चा विश्वास नहीं था, मैं हमेशा अपने भविष्य के जीवन के बारे में चिंतित रहती थी। न केवल इससे मेरी समस्याओं का हल नहीं हो सकता था, बल्कि यह केवल उस दबाव और बोझ में बढ़त कर रहा था जो मैं पहले से महसूस कर रही थी। यह सोचकर, मैंने अपने परिवार के भविष्य को परमेश्वर के हाथों में सौंपते हुए, उनसे प्रार्थना की। मैंने अपनी प्रार्थना में कहा, "चाहे परमेश्वर जो भी करें, मैं केवल उनकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने में सक्षम होने की कामना करती हूँ। उसी वक्त, मैं जो दबाव और तनाव महसूस कर रही थी, उससे मुझे थोड़ी राहत मिली।"

 

मैं गहन चिकित्सा विभाग गयी और अपने पति को देखा। चूँकि उनके सिर का फ्रैक्चर हुआ था, इस कारण उनके दोनों कानों से खून रिस रहा था। उनकी तीन पसलियां भी टूटी गयी थीं, उनके दाहिने पैर की हड्डी टूट चुकी थी, बाएं पैर के सभी पंजे टूटे हुए थे, दोनों फेफड़े जख्मी हो चुके थे, और उनके शरीर का ज्यादातर हिस्सा काले और नीले रंग के जख्मों से भरा था। मैंने सोचा कि कल सुबह मेरे पति कितने खुश थे, और कल शाम को उन्होंने हमारे बेटे से फोन पर बात की थी, और अब वह इस हाल में थे… जितना मैंने इस बारे में सोचती, उतना ही मुझे लगता कि दर्द मेरे दिल को चीर रहा है।

 

दुर्घटना के बाद के तीसरे दिन, मेरे पति की हालत अचानक बिगड़ गई। उनकी सांस बहुत उथली हो गई और उनके चेहरा बेरंग पड़ गया, मानो वे मरने ही वाले थे। मेरे पति को देखकर, मेरे परिवार ने रोते हुए कहा कि मेरे पति शायद पूरा दिन नहीं देख पाएंगे। यह सोचकर कि वे हमें छोड़ कर जा रहे हैं, मेरा दिल दुःख से भर गया और मैं बहुत पीड़ा में थी। उसी समय, मुझे एहसास हुआ कि लोग कितने नगण्य हैं, और बीमारी के सामने हम कितने असहाय और शक्तिहीन हैं। मैं बस परमेश्वर से चुपचाप प्रार्थना कर सकती थी, उनसे आशा कर सकती थी और अपने पति को उन्हें सौंप सकती थी। उस समय, मैं एक भजन, "पा नहीं सकते थाह परमेश्वर के कार्यों की," के बारे में सोचने लगी जिसमें लिखा है, "फैले हो तुम ज़मीं से आसमाँ तक, कौन जानता है दायरा तुम्हारे कर्मों का? रेतीले तट पर देखते हैं हम बस एक कण, तुम्हारी व्यवस्था के हम इंतज़ार में हैं ख़ामोशी से।" मैं ख़ामोशी से दिल में यह गीत गुनगुनाने लगी और समझ गयी कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता हैं, कि वह सभी चीजों पर शासन करते हैं, उनका प्रशासन करते हैं, कि परमेश्वर जीवन, मृत्यु, बीमारी और बुढ़ापे को पूर्वनियत करते हैं, साथ ही साथ ऐसे नियमों का निर्धारण भी करते हैं जो सभी चीजों में परिवर्तन पर नियन्त्रण करते हैं। मैं समझ गयी कि कोई भी इंसान उन्हें बदल नहीं सकता, उन्हें तोड़ने की तो बात ही दूर है। जब प्रभु यीशु ने अपने कार्य किए, तो उन्होंने हवा और समुद्र को फटकारने के लिए केवल एक वचन कहा और वे शांत हो गए; एक वचन के साथ, प्रभु यीशु ने लाजर को उसके कब्र से बाहर बुलाया और वह 4 दिनों के लिए मृत होने के बाद फिर से जीवित हो गया। परमेश्वर नरक की चाबी रखते हैं और मानवजाति के जीवन और मृत्यु को नियंत्रित करते हैं। केवल परमेश्वर ही लोगों को जीवन में वापस ला सकते हैं, शून्य को किसी वस्तु में बदल सकते हैं—परमेश्वर के अधिकार को नापा नहीं जा सकता! परमेश्वर के कर्मों पर विचार करते हुए मैंने परमेश्वर में अपनी आस्था को पा लिया और मैं विश्वास करने लगी कि सभी चीजें परमेश्वर के हाथों में हैं। मेरे पति फिर से जागेंगे या नहीं, उनकी चोटें किस हद तक विकसित होंगी, यह परमेश्वर के ऊपर है। मैंने फिर परमेश्वर से प्रार्थना की, अपने पति को उन्हें सौंप दिया, उनकी सभी व्यवस्थाओं के लिए समर्पित होने को तैयार हो गयी।

 

चौथे दिन की सुबह, मैं और मेरा बेटा गहन चिकित्सा विभाग में गये और एक नर्स से अपने पति की स्थिति के बारे में पूछा। उसने कहा कि कोई नई घटना नहीं हुई है, लेकिन वह पहले से थोड़ा बेहतर हैं। कृतज्ञता के आँसू मेरे आँखों से बह निकले, मैंने ख़ामोशी से परमेश्वर को अपना धन्यवाद और स्तुति अर्पित की।

 

एक सप्ताह बीत गया, मेरे पति अब तक होश में नहीं आये थे। डॉक्टर ने मुझसे कहा, "चूँकि आपके पति को अभी तक होश नहीं आया है, हमें ऑपरेशन करवाने के लिए उन्हें दूसरे अस्पताल में स्थानांतरित करना होगा। आपको ऑपरेशन के लिए भुगतान करने के लिए बहुत से धन का इंतजाम करना होगा।" बात करते हुए, उन्होंने वार्ड के एक अन्य मरीज की ओर इशारा किया, और कहा, "उन्हें देखिये। उनकी चोटें आपके पति की तरह गंभीर नहीं हैं, लेकिन 10 दिनों से अधिक समय से उनका इलाज चल रहा है और उनकी सूजन कम नहीं हुई है और उन्हें होश नहीं आया है। हमारे पास उन्हें दूसरे अस्पताल में स्थानांतरित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।" डॉक्टर की बात सुनकर, मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। मुझे चिंता थी कि मेरे पति दिमागी रूप से मृत हो जाएंगे, लेकिन मुझे नहीं पता था कि उनके ऑपरेशन के भुगतान के लिए पैसे कहाँ से लाऊँ। उस समय, मैं अपने क्रेडिट कार्ड पर लोन लेकर अपने पति के अस्पताल की फीस का भुगतान कर रही थी। अगर पैसे कम पड़ जाने के कारण उनके इलाज में देरी हुई, तो मैं क्या करुँगी? उस पल, चिंता, घबराहट, दर्द और लाचारी ने मुझ पर एक साथ हमला कर दिया। मैं बस परमेश्वर से प्रार्थना कर सकती थी, उनसे आशा कर सकती थी, उन्हें सब कुछ सौंप कर उनकी मदद और मार्गदर्शन की याचना कर सकती थी।

 

दसवें दिन, उपस्थित डॉक्टर ने मुझसे कहा, "मैं आपके लिए दूसरे अस्पताल से संपर्क करूंगा। यदि आपके पति अगले दो दिनों में होश में नहीं आते हैं, तो उन्हें स्थानांतरित करना होगा, क्योंकि आपके पति के पैर की हड्डी का ऑपरेशन दो हफ्तों के भीतर किया जाना चाहिए, अन्यथा वह स्थायी रूप से अक्षम हो जाएगा। ऑपरेशन के लिए आपको लगभग 400 हज़ार युआन का इंतज़ाम करना होगा। इसमें वाकई देरी नहीं की जा सकती है…" यह सुनकर, मैं बेहद चिंतित हो गयी, और मुझे नहीं पता था कि मैं इतने पैसे उधार लेने के लिए कहाँ जा सकती हूँ। मेरे परिवार ने ट्रैफिक पुलिस को उपहार दिए ताकि वे हमें उस व्यक्ति को खोजने में मदद करें जो मेरे पति से टकरा गया था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। हमारे रिश्तेदारों और दोस्तों ने हमारी स्थिति देखी, वे जानते थे कि हम कभी भी पैसा वापस नहीं कर पाएंगे, और इसलिए उन्होंने मुझसे केवल सांत्वना के शब्द कहे, कोई भी व्यक्ति हमें एक पैसा उधार देने को तैयार नहीं था। संसार और मानवीय भावनाओं की अस्थिरता ने मुझे निराशा में डाल दिया। रोते हुए, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और कहा, "हे परमेश्वर! सब कुछ आपके हाथों में है। मेरे पति 10 दिन से बेहोश हैं, फिर भी वे जी रहे हैं, और इससे मैं देख सकती हूँ कि आप उनकी रक्षा कर रहे हैं। लेकिन आज, डॉक्टर हमें दूसरे अस्पताल में स्थानांतरित करना चाहते हैं और ऑपरेशन बहुत महंगा होगा। मैं वास्तव में नहीं जानती कि क्या करना है। हे परमेश्वर! मैं आपसे मेरी आस्था को दृढ़ करने और मेरे लिए एक मार्ग खोलने की विनती करती हूँ। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या करते हैं, मैं इसे एक आज्ञाकारी दिल के साथ अनुभव करना चाहती हूँ।" प्रार्थना करने के बाद, मैंने थोड़ा शांत महसूस किया। इन पिछले कुछ दिनों में, मैं प्रार्थना के माध्यम से परमेश्वर के करीब हो गयी थी और मैंने अपनी आँखों से परमेश्वर के चमत्कारिक कार्यों को देखा था। सभी बाधाओं के बावजूद, मेरे पति अभी भी जीवित थे, यह सब परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा के कारण ही था। मेरा मानना था कि, जब तक मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती हूँ, उन पर भरोसा करती रहती हूँ, तब तक परमेश्वर निश्चित रूप से मेरा मार्गदर्शन करेंगे। मुझे परमेश्वर में विश्वास रखना ही होगा, थोड़ा झटका लगने के कारण निराश और उदास नहीं होना चाहिए, क्योंकि अगर मैं ऐसा महसूस करने लगी, तो मैं परमेश्वर के काम का अनुभव कैसे करुँगी?

 

बाद में, मैं कुछ पैसे जुटाने की कोशिश करने के लिए घर लौट आयी। अप्रत्याशित रूप से, मेरे चाचा मुझे कुछ पैसे उधार देने के लिए तैयार हो गये थे और उससे भी बेहतर खबर यह थी कि जो व्यक्ति दुर्घटना का ज़िम्मेदार था, वह मिल गया था। तभी, मेरे बेटे ने मुझे फोन किया और उत्साह से कहा, "माँ, पिताजी को होश आ गया है। डॉक्टर कह रहे हैं कि उन्हें अब दूसरे अस्पताल में स्थानांतरित होने की आवश्यकता नहीं है, और पिताजी के ऑपरेशन की व्यवस्था कर रहे हैं। जल्दी कीजिये और अस्पताल आ जाइये।" अपने बेटे की बात सुनकर, मैं बहुत रोमांचित हो गयी, मेरी आँखों से आँसू बह निकले और मेरा दुःख, सुख से मिल गया। अपने दिल में, मैं परमेश्वर का शुक्रिया अदा करती रही और उनके शानदार कामों की स्तुति करता रही।

 

मेरे पति के पैर की हड्डी के ऑपरेशन से पहले, डॉक्टर ने मुझे गारंटी फॉर्म पर और गंभीर बीमारी के नोटिस पर हस्ताक्षर करने को कहा, उन्होंने मुझसे कहा, "हालांकि आपके पति को होश आ गया है, लेकिन उनकी चोटों की गंभीर प्रकृति के कारण, उनका शरीर बहुत कमज़ोर है। उन्हें अब एक लंबे ऑपरेशन से गुज़रना होगा और अगर वह इसे सहन नहीं पाए तो वह ऑपरेशन की मेज पर छटपटाने लगेंगे। इसलिए, हमें उन्हें बेहोशी की दवा देनी होगी। लेकिन ऐसा करने से, ये जोखिम रहेगा कि ऑपरेशन के बाद उन्हें फिर से होश न आये। हमने इस अस्पताल में पहले भी ऐसा होते देखा है। रोगी के एक रिश्तेदार के रूप में, आपको ध्यान से सोचना होगा कि क्या आप ये जोखिम लेना चाहती हैं या बस उन्हें अपनी वर्तमान स्थिति में छोड़ देना चाहती हैं।" डॉक्टर की बातें सुनने के बाद, मैं असमंजस में पड़ गयी थी। थोड़ी देर के लिए मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, मुझे नहीं पता था कि मैं यह निर्णय कैसे लूँ। तब मैंने सोचा कि मेरे पति ने अस्पताल में पिछले 10 दिन अधिक खतरे के बिना निकाले हैं। न केवल उन्हें दूसरे अस्पताल में स्थानांतरित नहीं किया गया, बल्कि वे ऑपरेशन से पहले होश में भी आ गये—क्या ये परमेश्वर के चमत्कारिक कर्म नहीं हैं? जबकि जो मरीज मेरे पति जितना गंभीर रूप से घायल नहीं था, वह भी 10 दिनों से अधिक समय के इलाज के बावजूद अभी तक होश में नहीं आया था। अंत में, उस मरीज को दूसरे अस्पताल में स्थानांतरित करना पड़ा था, और यह अनिश्चित था कि वह जीवित रहेगा या नहीं। मैंने सोचा कि कैसे मेरे पति को परमेश्वर द्वारा पूरे समय संरक्षित रखा गया था, इसलिए जो भी आगे होगा वह भी परमेश्वर द्वारा शासित होगा। मनुष्य का जीवन, मृत्यु, भाग्य और दुर्भाग्य सभी परमेश्वर के हाथों में हैं, मुझे परमेश्वर के आयोजन और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना ही चाहिये। इसलिए मैंने इस बारे में और नहीं सोचा और फॉर्म पर हस्ताक्षर करते हुए मैंने परमेश्वर से एक मौन प्रार्थना की: "हे परमेश्वर! मैं विश्वास करती हूँ कि मेरे पति की जीवन-मृत्यु आपके हाथों में है, डॉक्टरों का कथन इस बारे में निर्णायक नहीं है। इस स्थिति का अनुभव करते हुए मैं आप पर भरोसा करना चाहती हूँ, आपसे आशा रखती हूँ। अंत में मेरे पति के साथ चाहे जो भी हो, मेरा मानना है कि आप जो कुछ भी करते हैं वह सबसे अच्छे के लिए होता है, मेरे जैसे छोटे से सृजन को सृष्टिकर्ता की आज्ञा का पालन करना चाहिये।"

मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरे पति का ऑपरेशन इतनी अच्छी तरह से हो पाएगा, उन्हें खतरे से धीरे-धीरे दूर जाते देखकर, मेरे दिल से पत्थर आखिरकार हट गया। डॉक्टर ने विस्मय में मुझसे कहा, "आपके पति का होश में आना, पूरी तरह से हमारी कल्पना के परे है। यह वास्तव में एक चमत्कार है!" मुझे दिल की गहराई से पता था कि यह सब परमेश्वर की सुरक्षा है, और मैंने तहे दिल से परमेश्वर की दया को धन्यवाद दिया। हालाँकि, ऑपरेशन के बाद मेरे पति पूरी तरह से अपनी स्मृति खो चुके थे और उन्होंने मुझे पहचाना भी नहीं। वे आसानी से अपना आपा खो देते थे, उनकी मानसिक स्थिति एक शिशु जैसी थी, और मैं बेहद चिंतित थी। मैंने डॉक्टर से सलाह ली और पूछा कि क्या मेरे पति कभी वैसे हो पाएंगे जैसे वह हुआ करते थे, लेकिन डॉक्टर ने कहा, "वह ऑपरेशन के बाद की भूलने की बीमारी से पीड़ित है और यह कहना मुश्किल है कि वह कब ठीक होंगे। जब आपके पति की चोट ठीक हो जाये तो वह पुनर्वास केंद्र में जा सकते हैं…" उन्हें यह कहते सुनकर, मैं एक बार फिर चिंता में पड़ने लगी: "यदि मेरे पति ऐसे ही रहे, तो वह एक साधारण व्यक्ति की तरह रहेंगे। मैं क्या करूं?" इस चिंता के साथ, मैं न खा सकती थी, न सो सकती थी, जब मुझे कुछ भी सूझना बंद हो गया तो मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा, "कहने का आशय है कि, कोई व्यक्ति मरने के बाद कहाँ जाता है और कहाँ उसका पुनर्जन्म होता है, वह पुरुष होगा अथवा स्त्री, उसका ध्येय क्या है, जीवन में वह किन परिस्थितियों से गुज़रेगा, उसकी असफलताएँ, वह किन आशीषों का सुख भोगेगा, वह किनसे मिलेगा, उनके साथ क्या होगा—कोई भी इसकी भविष्यवाणी नहीं कर सकता है, इससे बच नहीं सकता है, या इससे छुप नहीं सकता है। कहने का अर्थ है कि, तुम्हारा जीवन निश्चित कर दिए जाने के पश्चात्, तुम्हारे साथ जो होता है उसमें, तुम इससे बचने का कैसा भी प्रयास करो, तुम किसी भी साधन द्वारा तुम बचने का प्रयास करो, आध्यात्मिक दुनिया में परमेश्वर ने तुम्हारे लिये जो मार्ग निर्धारित कर दिया है उसके उल्लंघन का तुम्हारे पास कोई उपाय नहीं है" ("स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X")। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ में आया कि परमेश्वर ने हमारे जीवन में उन सभी चीजों को पूर्वनियत किया है जिनका हम अनुभव करते हैं। यह हमारे ऊपर नहीं है कि क्या होता है, चाहे कठिनाई हो या सौभाग्य, हम इसकी भविष्यवाणी नहीं कर सकते। लेकिन अपने पूरे जीवन के दौरान प्रत्येक चरण जिसका हम अनुभव करते हैं वो परमेश्वर द्वारा सावधानीपूर्वक व्यवस्थित की गई है और सभी बातों के पीछे उनके अच्छे इरादे हैं। परमेश्‍वर को आशा है कि हम इन वातावरणों का अनुभव करते हुए, उनके स्वभाव और स्वरूप को भलीभांति समझ जायेंगे और वह आशा करते हैं कि वे हमारे जीवन को विकसित करने में सक्षम होंगे। मैं उन पिछले कुछ दिनों के अपने अनुभवों के बारे में सोचने लगी, जब मेरे पति का जीवन उस कार दुर्घटना के कारण बुझने वाला था, जब मैं खुद को असहाय और दर्द में महसूस कर रही थी, तो यह परमेश्वर के वचनों का सामयिक प्रबोधन और मार्गदर्शन ही था जिसने मुझे उनकी संप्रभुता और अधिकार के बारे में समझाया था। केवल तबी ही मैंने अपने दिल से चिंता को निकाला, मुझे परमेश्वर पर भरोसा करने का विश्वास मिला; जब मैं ऑपरेशन की भारी लागत का सामना कर रही थी और नहीं जानती थी कि मुझे क्या करना है, मैंने परमेश्वर से ईमानदारी से प्रार्थना की और परमेश्वर ने मेरे लिए एक रास्ता खोल दिया। न केवल उन्होंने मेरे पैसे की कमी की समस्या का हल किया, बल्कि वे मेरे पति को होश में भी लाये। बाद में, मैंने वास्तव में परमेश्वर के प्रेम और मार्गदर्शन का अनुभव किया। परमेश्वर मुझे एक पल के लिए भी नहीं छोड़ते थे, हर बार जब मैं खुद को असहाय एवं कमजोर महसूस करती थी, तो परमेश्वर अपने समयोचित वचनों द्वारा मुझे बाधाओं को पार करने की राह दिखाने के लिए मौजूद रहते थे। परमेश्वर के मार्गदर्शन के बिना, मुझे नहीं पता होता कि उस दर्द से कैसे निकलना है। केवल अब मुझे यह समझ में आया है कि, अगर मुझे इस स्थिति का अनुभव नहीं होता, तो मैं कभी भी परमेश्वर को वास्तव में नहीं जान पाती, परमेश्वर के अधिकार के बारे में मेरी समझ हमेशा सैद्धांतिक बनी रहती, उनमें मेरा विश्वास कभी नहीं बढ़ता। इन स्थितियों ने मेरे जीवन को सबसे अधिक लाभ पहुँचाया है इसलिए मैं अब उनसे बचने की इच्छा नहीं रखती, और मैं आगे के मार्ग पर चलने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करने को तैयार हूँ, और मुझे विश्वास है कि परमेश्वर मेरा मार्गदर्शन करेंगे।

 

मेरे पति स्थानान्तरित होने से पहले 21 दिनों तक शहर के अस्पताल में रहे। उसके बाद, मैंने हर दिन परमेश्वर से प्रार्थना की और अपने पति को परमेश्वर के हाथों में रख दिया। मैंने धैर्यपूर्वक उन्हें बोलना सिखाया और सभी प्रकार की चीजों और उसके आसपास के लोगों को पहचानना सिखाया। बहुत धीरे-धीरे, वे रिश्तेदारों को पहचानने में सक्षम हो गये और अब अपना आपा नहीं खोते थे। अपने पति को दिन-प्रतिदिन बेहतर होते देखकर मुझे बहुत खुशी हुई, और सभी डॉक्टरों ने आश्चर्यचकित होते हुए मुझसे कहा, "यह तो अविश्वसनीय है। किसी ने नहीं सोचा होगा कि ये इतनी जल्दी ठीक होने लगेंगे। ये तो वास्तव में चमत्कार है! उनकी बगल में जो मरीज़ था वो भी उन्हीं के समान कार एक्सीडेंट का शिकार था और दुर्घटना के 6 महीनों के बाद भी उसे होश नहीं आया है। अभी भी संदेह है कि वह जीवित रहेगा या नहीं। आप सच में बहुत भाग्यशाली हैं!" यह सुनकर, मैं अपने दिल में परमेश्वर का धन्यवाद और प्रशंसा करती रही, क्योंकि यह केवल परमेश्वर की सुरक्षा थी जिसने मेरे पति को जीवित रखा था।

 

मेंरे पति को अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद उनकी तबियत जल्दी से ठीक होने लगी। न केवल वह बैसाखी की सहायता से चल सकते थे, बल्कि उनकी मूल स्मृति भी वापस आ गई थी। मैंने उन्हें वो सब बताया जो अस्पताल में भर्ती होने के बाद से हुआ था, कैसे मैंने परमेश्वर पर भरोसा किया था और कैसे परमेश्वर ने मुझे उन दिनों के अत्यंत दर्द और कमजोरी से निकलने की राह दिखाई थी। उनकी आँखों में आँसू झिलमिलाने लगे, "जब मैं बेहतर हो जाउँगा, तो मैं गवाही दूँगा कि परमेश्वर ने मुझे बचाया, ताकि अधिक लोगों को परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और उनके चमत्कारिक कर्मों के बारे में पता चले।" जब मैने अपने पति को यह कहते हुए सुना तो मुझे परमेश्वर के उद्धार के लिए वास्तविक आभार महसूस हुआ।

 

इस असाधारण अनुभव के माध्यम से, मैंने वास्तव में परमेश्वर के चमत्कारिक कर्मों को देखा, मैंने देखा कि परमेश्वर सभी चीजों के शासक हैं। परमेश्वर वास्तव में हर एक व्यक्ति के जीवन और मृत्यु को नियंत्रित करते हैं, और कोई भी सृजित वस्तु कभी भी उनके सामर्थ्य और अधिकार को पार नहीं कर सकती है। जैसा कि परमेश्वर का वचन कहता है, "मनुष्य का जीवन परमेश्वर से निकलता है, स्वर्ग का अस्तित्व परमेश्वर के कारण है, और पृथ्वी का अस्तित्व भी परमेश्वर की जीवन शक्ति से ही उद्भूत होता है। कोई वस्तु कितनी भी महत्वपूर्ण हो, परमेश्वर के प्रभुत्व से बढ़कर श्रेष्ठ नहीं हो सकती, और कोई भी वस्तु शक्ति के साथ परमेश्वर के अधिकार की सीमा को तोड़ नहीं सकती है। इस प्रकार से, चाहे वे कोई भी क्यों न हों, सभी को परमेश्वर के अधिकार के अधीन ही समर्पित होना होगा, प्रत्येक को परमेश्वर की आज्ञा में रहना होगा, और कोई भी उसके नियंत्रण से बच कर नहीं जा सकता है" ("केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता है")।

 

स्रोत: यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए

 

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इससे हमें पवित्र आत्मा के काम को फिर से हासिल करने और परमेश्वर के करीब आने में मदद मिलेगी।"

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