क्या बाइबल की गवाही देना और बाइबिल कि व्याख्यान करना परमेश्वर को संतुष्ट करना है?

 

प्रश्न 34: धार्मिक पादरियों और प्राचीन लोगों को बाइबल का सशक्त ज्ञान है, वे प्रायः लोगों के समक्ष बाइबल का विस्तार करते हैं और उन्हें बाइबल का सहारा बनाये रखने के लिए कहते हैं, इसलिए बाइबल की व्याख्या करना और उसकी प्रशंसा करना क्या वास्तव में परमेश्वर की गवाही देना और प्रशंसा करना है? ऐसा क्यों कहा जाता है कि धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग ढोंगी फरीसी हैं? हम अभी भी इसको समझ नहीं सकते हैं, तो क्या तुम हमारे लिए इसका जवाब दे सकते हो?

 

उत्तर:

 

लोगों के लिए, बाइबल की व्याख्या करना गलत नहीं होना चाहिए, परंतु बाइबल की व्याख्या करते वक्त वे वास्तव में ऐसे काम करते हैं जिनसे परमेश्वर का विरोध होता है। ये किस तरह के लोग हैं? क्या वे पाखंडी फरीसी नहीं हैं? क्या वे परमेश्वर काविरोध करने वाले मसीह-विरोधी नहीं हैं? पादरियों और एल्डरों का बाइबल की व्याख्या करना परमेश्वर का विरोध करना क्यों है? यह परमेश्वर की निंदा क्यों है? अभी भी ऐसे लोग हैं जो समझ नहीं पाते हैं और अभी भी सोचते हैं कि बाइबल की व्याख्या करना, परमेश्वर को गौरवान्वित करना और उनकी गवाही देना है। उस ज़माने के यहूदी मुख्य याजक, शास्त्री और फरीसी सभी धर्मग्रंथों के अध्येता और विद्वान थे, जो लोगों के सामने अक्सर धर्मग्रंथों की व्याख्या किया करते थे। अगर बाइबल की व्याख्या करना, परमेश्वर को गौरवान्वित करना और उनकी गवाही देना है, तो फिर जब प्रभु यीशु उपदेश देने और कार्य करने आये, तो उन लोगों ने इसके बजाय क्यों प्रभु यीशु का घोर विरोध किया और निंदा की, और अंत में प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ा देने के लिए सरकार के साथ सांठ-गांठ की? आधुनिक धार्मिक पादरी और एल्डर ऐसे लोग हैं, जो बाइबल को जानते हैं, और बरसों से बाइबल की व्याख्या करते रहे हैं। अगर बाइबल की व्याख्या करना परमेश्वर को गौरवान्वित करना और उनकी गवाही देना है, तो फिर जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य व्यक्त करने और न्याय का कार्य करने आये तो किस वजह से वे न केवल खोजने और जाँच-पड़ताल करने में नाकाम रहे, बल्कि इसके बजाय वे उनका विरोध और निंदा करते रहे? यहाँ समस्या क्या है? क्या यह एक गंभीर समस्या नहीं है जिस पर सभी विश्वासियों को विचार करना चाहिए? साथ ही, अगर धार्मिक अगुवाओं का बाइबल की व्याख्या करना और परमेश्वर को गौरवान्वित करना और उनकी गवाही देना एक समान हैं, तो अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने आने के बाद आराधना-स्थल में कार्य क्यों नहीं किया? ऐसा क्यों है कि अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर आने के बाद कलीसिया में कार्य क्यों नहीं करते? ऐसा इसलिए क्योंकि धार्मिक अगुआ बिल्कुल भी परमेश्वर को गौरवान्वित नहीं करते और उनकी गवाही नहीं देते और वे सभी पाखंडी और घमंडी फरीसी हैं। वे सब मसीह-विरोधी हैं, जो धर्म पर नियंत्रण करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं! वे परमेश्वर को अस्तित्व में कैसे रहने दे सकते हैं या धार्मिक दुनिया में ऐसी आवाजें कैसे होने दे सकते हैंजो परमेश्वर की गवाही देती हों? अगर देहधारी मसीह धर्म में आ जाएं और धर्मपरायण कलीसिया में कार्य करें और उपदेश दें, तो यह पक्का है कि उन्हें गिरफ्तार कर सत्ताधारी पार्टी के हवाले कर दिया जाएगा और फिर उन्हें सूली पर चढ़ा दिया जाएगा। अगर लोग धर्मपरायण कलीसियाओं में परमेश्वर की गवाही देने जाएँ, तो उन्हें निश्चित रूप से गिरफ्तार कर लिया जाएगा और उन पर अत्याचार किये जाएँगे। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा था, "देखो, मैं तुम्हें भेड़ों के समान भेड़ियों के बीच में भेजता हूँ" (मत्ती 10:16)। क्या हम अभी भी इस सच्चाई को साफ तौर पर नहीं देख सकते? धार्मिक फरीसियों द्वारा परमेश्वर के विरोध और निंदा की सच्चाई के आधार पर, हमें यह साफ समझ लेना चाहिए कि बाइबल को गौरवान्वित करना परमेश्वर के गवाही देना है या नहीं। क्या वे लोग जो परमेश्वर को गौरवान्वित करते हैं और उनकी गवाही देते हैं, परमेश्वर का विरोध कर सकते हैं? क्या वे परमेश्वर को अपना दुश्मन मान सकते हैं? इसके अलावा, हम सबको जानना चाहिए कि बाइबल में सिर्फ परमेश्वर के वचन नहीं हैं, बल्कि मनुष्य के भी बहुत-से कथन हैं। इसलिए, बाइबल को गौरवान्वित करना और परमेश्वर को गौरवान्वित करना एक ही बात नहीं हैं। बाइबल का मान बनाये रखना और प्रभु के आदेशों का मान बनाये रखना दोनों एक नहीं हैं। जब धर्मपरायण फरीसी बाइबल की व्याख्या करते हैं, तो वे सिर्फ़ बाइबल के मनुष्य के कथनों पर ही ध्यान देते हैं, और बाइबल के ज्ञान और धर्मशास्त्रीय सिद्धांत की व्याख्या करते हुए प्रवचन देते हैं और मनुष्य के कथनों की गवाही देते हैं, लेकिन वे बाइबल में परमेश्वर के वचनों और उनके द्वारा व्यक्त सत्य का प्रसार करने और उनकी गवाही देने पर ध्यान नहीं देते। क्या अभी भी इसे परमेश्वर को गौरवान्वित करना और उनकी गवाही देना कहा जा सकता है? क्या यह परमेश्वर का विरोध करना और उनको धोखा देना नहीं है? इसलिए, वे सब लोग जो यह सोचते हैं कि बाइबल की व्याख्या करना परमेश्वर को गौरवान्वित करना और उनकी गवाही देना है, वे अध्यात्मिक मामलों और समस्या के सार को नहीं समझते। वे सब चकराये हुए लोग हैं, ऐसे लोग, जो आँख बंद करके धर्मपरायण अगुवाओं में विश्वास करते हैं, उनके पीछे चलते हैं और उनकी आराधना करते हैं। क्या ये सच नहीं है?

 

 

उस ज़माने में, वे यहूदी फरीसी सिर्फ बाइबल के ज्ञान और सिद्धांतों की व्याख्या करने पर, और साथ ही धार्मिक रीति-रिवाजों में लगे रहने और धार्मिक नियमों और इंसानी परंपराओं को मानने पर ही ध्यान देते थे, मगर उन्होंने परमेश्वर के आदेशों का त्याग कर दिया और परमेश्वर के रास्ते से दूर चले गये, इस तरह कि जब प्रभु यीशु आये, तो उन्होंने प्रभु यीशु का जम कर विरोध किया, उनकी निंदा की और उन्हें सूली पर चढ़ा दिया। नतीजा ये हुआ कि परमेश्वर ने उनको श्राप और दंड दिया। हालांकि आजकल के धार्मिक पादरी और एल्डर अक्सर लोगों के सामने बाइबल की व्याख्या करते हैं और बाइबल की गवाही देते हैं, वे परमेश्वर के वचन को फ़ैलाने और उसकी गवाही देने पर ध्यान नहीं देते हैं, या प्रभु यीशु की इच्छा और मनुष्य से उनकी अपेक्षाओं पर उपदेश देने पर ध्यान नहीं देते हैं, और विरले ही प्रभु यीशु के दिव्य सार और मनोहरता की गवाही देते हैं। वे प्रभु के वचन पर चलने और उसका अनुभव करने के लिए लोगों का मार्गदर्शन नहीं करते, और यही नहीं, वे प्रभु के आदेशों का मान रखने और परमेश्वर की इच्छा का पालन करने पर संगति करने पर भी ध्यान नहीं देते। वे सिर्फ बाइबल में मनुष्य के कथनों की व्याख्या करने और उनको गौरवान्वित करने पर ध्यान देते हैं, दूसरों को बाइबल में मनुष्य के कथनों को परमेश्वर के वचन और उनको सत्य मानने, उन पर चलने और उनका पालन करने पर मजबूर करते हैं। वे समस्याओं का हल भी बाइबल में परमेश्वर के वचनों के बजाय ज़्यादातर बाइबल में मनुष्य के कथनों के आधार पर ही निकालते हैं। वे परमेश्वर के वचनों का विरोध करने और उनको ठुकराने के लिए बाइबल में दिए गये मनुष्य के कथनों का इस्तेमाल करते हैं। मिसाल के तौर पर, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के मुद्दे पर, प्रभु यीशु ने लोगों से साफ़ तौर पर कहा था: "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)। लेकिन इसके बजाय पादरी और एल्डर प्रभु यीशु के वचनों को किनारे कर देते हैं और बाइबल में मनुष्य के वचनों को सत्य और स्वर्ग के राज्य में मनुष्य के प्रवेश के लिए मानक के रूप में लेते हैं, लोगों को यह सिखाते हुए कि उन्हें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की खातिर सिर्फ प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करनी है। वे परमेश्वर के वचनों की जगह लेने और उनको ठुकराने के लिए मनुष्य के कथनों का इस्तेमाल करते हैं, और नतीजतन वे लोगों को भटका देते हैं। यह धर्म का पालन करने वाले पादरियों और एल्डर्स के परमेश्वर-विरोध का सबसे ज़्यादा विश्वासघाती और दुर्भावनापूर्ण पहलू है! वे अप्रसांगिक रूप से बाइबल की व्याख्या करते हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध और निंदा करने के लिए बाइबल के मनुष्य के कथनों का इस्तेमाल करते हैं, और विश्वासियों को धोखा देने, बाँध कर उन पर काबू करने, और उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की खोजबीन करने और उसको स्वीकार करने से रोकने में कोई कसर नहीं छोड़ते, और सभी को मजबूती से अपने खुद के काबू में कर लेते हैं। बिल्कुल जैसे कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "हर पंथ और संप्रदाय के अगुवाओं को देखो। वे सभी अभिमानी और आत्म-तुष्ट हैं, और वे बाइबल की व्याख्या संदर्भ के बाहर और उनकी अपनी कल्पना के अनुसार करते हैं। वे सभी अपना काम करने के लिए प्रतिभा और पांडित्य पर भरोसा करते हैं। यदि वे कुछ भी उपदेश करने में असमर्थ होते, तो क्या वे लोग उनका अनुसरण करते? कुछ भी हो, उनके पास कुछ ज्ञान तो है ही, और वे सिद्धांत के बारे में थोड़ा-बहुत बोल सकते हैं, या वे जानते हैं कि दूसरों को कैसे जीता जाए, और कुछ चालाकियों का उपयोग कैसे करें, जिनके माध्यम से वे लोगों को अपने सामने ले आए हैं और उन्हें धोखा दे चुके हैं। नाम मात्र के लिए, वे लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वास्तव में वे अपने अगुवाओं का अनुसरण करते हैं। अगर वे उन लोगों का सामना करते हैं जो सच्चे मार्ग का प्रचार करते हैं, तो उनमें से कुछ कहेंगे, 'हमें परमेश्वर में अपने विश्वास के बारे में हमारे अगुवा से परामर्श करना है।' देखिये, परमेश्वर में विश्वास करने के लिए कैसे उन्हें किसी की सहमति की आवश्यकता है; क्या यह एक समस्या नहीं है? तो फिर, वे सब अगुवा क्या बन गए हैं? क्या वे फरीसी, झूठे चरवाहे, मसीह-विरोधी, और लोगों के सही मार्ग को स्वीकार करने में अवरोध नहीं बन चुके हैं?" ("मसीह की बातचीतों के अभिलेख" में "केवल सत्य का अनुसरण ही परमेश्वर में सच्चा विश्वास है")। इन तथ्यों के आधार पर, हम ये कैसे कह सकते हैं की धर्मपरायण पादरी और एल्डर्स का बाइबल की व्याख्या करना परमेश्वर को गौरवान्वित करना और उनकी गवाही देना है? क्या वे लोग बाइबल की व्याख्या करने के इस मौके का फायदा, परमेश्वर का विरोध करने के इरादे से बाइबल की गलत व्याख्या करने और विषयों का अप्रसांगिक रूप से इस्तेमाल करते हैं? एक अरसे से ये लोग, लोगों के सच्चे मार्ग को स्वीकार करने और परमेश्वर के पास लौटने की राह में रोड़े और बाधा बन गये हैं, और बिल्कुल वही मसीह-विरोधी हैं, जो अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य से बेनकाब होते हैं। क्या हम इस सच्चाई को अभी भी नहीं समझ पा रहे हैं?

 

लोगों की धारणाओं के अनुसार, बाइबल की व्याख्या करना, परमेश्वर को गौरवान्वित करना और उनकी गवाही देना ही है, लेकिन फरीसियों और धार्मिक अगुवाओं की बाइबल की व्याख्या से, हम समझ सकते हैं कि दरअसल ऐसा नहीं है। धार्मिक फरीसी जिसको गौरवान्वित कर गवाही दे रहे हैं, वह बाइबल है, परमेश्वर नहीं हैं। उनके उपदेश मुख्य रूप से बाइबल में मनुष्य के कथनों की व्याख्या होते हैं, परमेश्वर के वचनों की नहीं। वे परमेश्वर के वचनों का विरोध करने और उनका स्थान लेने के लिए बाइबल में मनुष्य के वचनों का इस्तेमाल करते हैं, और परमेश्वर का विरोध करने और उनके बारे में निष्कर्ष निकालने के लिए, बाइबल में मनुष्य के कथनों का अप्रसांगिक रूप से प्रयोग करते हैं। बाइबल की व्याख्या करने का उनका उद्देश्य परमेश्वर को गौरवान्वित करना और उनकी गवाही देना नहीं होता, बल्कि अपने घिनौने मकसद को पूरा करने के लिए लोगों को धोखा देना और उनको काबू में करना होता है। बाइबल की ऐसी व्याख्या करना परमेश्वर का विरोध और बुरे काम करना है! इसी वजह से, वे लोग, परमेश्वर के कार्य के लिए आने पर, लोगों पर मजबूत पकड़ बनाये रखने के लिए बाइबल का उपयोग करते हैं, ताकि लोग आँखें बंद करके बाइबल में विश्वास करें और बाइबल से बंधे रहें, इस तरह से वे लोगों को परमेश्वर-विरोध के रास्ते पर ले जाते हैं। इससे पता चलता है कि फरीसियों और धर्मपरायण अगुवाओं की बाइबल की ऐसी व्याख्या परमेश्वर के विरोध का एक तरीका है। वे परमेश्वर का विरोध करने और अपना खुद का स्वतंत्र राज्य बनाने के लिए, बाइबल में मनुष्य के कथनों का पूरी तरह अप्रसांगिक रूप से प्रयोग हैं। तो फिर बाइबल की व्याख्या कैसे करनी चाहिए कि वह परमेश्वर को गौरवान्वित करनेवाली और उनकी गवाही देनेवाली हो सके? बाइबल में जो दर्ज है, वह परमेश्वर का कार्य और उनकी गवाहियां हैं। बाइबल की व्याख्या करने का अर्थ बाइबल में परमेश्वर के वचनों और बाइबल में निहित सत्य के अनुसार परमेश्वर को गौरवान्वित करना और उनकी गवाही देना है। यह बाइबल में परमेश्वर के वचनों को फैलाना और उनकी गवाही देना है। यह परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार और परमेश्वर के वचनों के आधार पर परमेश्वर के इररादों का संवाद करना है और परमेश्वर के वचनों में निहित सत्य का संवाद करना है। यह लोगों तक परमेश्वर के कार्य और उनके स्वभाव का प्रमाण पहुंचाना है, और परमेश्वर के सार और उनकी मनोहरता की गवाही देना है। यह परमेश्वर के वचनों पर अमल कर उनका अनुभव करने में लोगों की अगुवाई करना है, ताकि वे परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश पा सकें। यह प्रभु यीशु को गौरवान्वित करने और हर चीज़ में उनकी गवाही देने के लिए है। बाइबल की सिर्फ इस प्रकार से व्याख्या करके ही, और परमेश्वर के दिल के अनुसार होकर और सच्चाई से परमेश्वर की सेवा करते हुए ही, कोई परमेश्वर को गौरवान्वित कर सकता है और उनकी गवाही दे सकता है, बाइबल में मनुष्य के कथनों का उपयोग सिर्फ संदर्भ और पूरक के रूप में किया जा सकता है, और कभी भी इनकी तुलना परमेश्वर के वचनों से नहीं की जा सकती है। फिर भी धर्मपरायण पादरी और एल्डर्स बाइबल में सिर्फ मनुष्य के कथनों की व्याख्या करने की ही परवाह करते हैं। वे बाइबल में मनुष्य के कथनों को परमेश्वर के वचनों के रूप में, और सत्य के रूप में लेते हैं, अपने आचरण और बर्ताव के लिए एक मार्गदर्शन के रूप में, और उस आधार के रूप में लेते हैं जिस पर समस्याओं से निपटने के उनके तरीके टिके होते हैं। मगर वे कभी-कभार ही परमेश्वर के वचनों के बारे में बोलते हैं, और वे बाइबल में मनुष्य के कथनों का उपयोग, परमेश्वर के वचनों का स्थान लेने और परमेश्वर के वचनों को पीछे छोड़ देने के लिए करते हैं। क्या बाइबल की इस प्रकार से व्याख्या करना परमेश्वर की गवाही देना है? क्या यह मनुष्य को गौरवान्वित करना और उसकी गवाही देना नहीं है? इसके अलावा, जब वे बाइबल की व्याख्या करते हैं, तो स्वयं का दिखावा करने के लिए बाइबल के पात्रों, स्थानों और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में बताते हुए, सिर्फ धर्मशास्त्रीय सिद्धांत की व्याख्या पर ही ध्यान देते हैं। क्या यह लोगों को धोखा देना और चंगुल में फंसाना नहीं है? क्या यह लोगों से अपनी खुद की आराधना और अनुसरण करवाना नहीं है? उस ज़माने में, उन पाखंडी फरीसियों ने बाइबल को समझाने के अपने मौके का गलत फायदा उठाकर बाइबल की गलत व्याख्या की, ताकि लोगों को धोखा देकर उन पर काबू किया जा सके, और अंत में वे विश्वासियों को मनुष्य के अनुसरण करने और परमेश्वर के विरोध के रास्ते पर ले गये, और उन्होंने यहूदी धर्म को परमेश्वर-विरोधी स्वतंत्र राज्य में बदल दिया। अंत के दिनों में, धार्मिक पादरी और एल्डर भी बाइबल को समझाने के मौके का फ़ायदा उठा रहे हैं ताकि लोग आँखें बंद करके बाइबल में विश्वास करें और बाइबल की आराधना करें, और वे लोगों के दिलों में परमेश्वर का स्थान, बाइबल को दिलाने के लिए उसका उपयोग कर रहे हैं, विश्वासियों को अनजाने ही प्रभु के वचन को धोखा देने और परमेश्वर का विरोध करने के रास्ते पर ले जारहे हैं, साथ ही, धार्मिक दुनिया को एक परमेश्वर-विरोधी स्वतंत्र राज्य, परमेश्वर के कार्य के विरोध का एक मजबूत किला बनारहे हैं। बाइबल की उन जैसी व्याख्या करना क्या परमेश्वर का विरोध और तिरस्कार करना नहीं है? क्या यह परमेश्वर का विरोध करने और अपना खुद का स्वतंत्र राज्य बनाने के लिए बिल्कुल मसीह-विरोधी फरीसियों जैसा छलावा नहीं है? इसे परमेश्वर को गौरवान्वित करना या उनकी गवाही देना कैसे कहा जा सकता है? परमेश्वर का विरोध करने में धर्मपरायण फरीसियों की चालाकी उनके बाइबल को समझाने के मौके का फायदा उठाकर बाइबल की गलत व्याख्या करने में है ताकि वे लोगों को धोखा देकर उन पर काबू कर सकें। बाइबल मूल रूप से परमेश्वर की गवाही थी। मनुष्य की धारणाओं के आधार पर तो, वे बाइबल की चाहे जैसी भी व्याख्या करें, वे हमेशा परमेश्वर की गवाही देते हैं, फिर भी पाखंडी फरीसी मनुष्य की इस धारणा का फायदा उठाते हैं, और बाइबल को गौरवान्वित करने और उसकी गवाही देने में कोई कसर नहीं छोड़ते। वे बाइबल का उपयोग परमेश्वर को प्रतिस्थापित करने, परमेश्वर का विरोध करने और लोगों को धोखा देने के लिए करते हैं। इससे हम आँखें बंद करके बाइबल में विश्वास करते हैं और उसकी आराधना करते हैं, और उन जैसे बाइबल विद्वानों की आराधना और अनुसरण करते हैं और इस तरह से परमेश्वर के साथ विश्वासघात करते हैं। यह शैतान का परमेश्वर का विरोध करने और लोगों को धोखा देने का सबसे घिनौना, धूर्त धोखा है, एक ऐसा पहलू है जिसे समझना हमारे लिए बहुत मुश्किल है और जिससे हम बड़ी आसानी से धोखा खा सकते हैं।

 

आइए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के दो अंशों पर नज़र डालें: "वे जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में बाइबल पढ़ते हैं, वे हर दिन बाइबल पढ़ते हैं, फिर भी उनमें से एक भी परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को नहीं समझता है। एक भी इंसान परमेश्वर को नहीं जान पाता है; और यही नहीं, उनमें से एक भी परमेश्वर के हृदय के अनुरूप नहीं है। वे सबके सब व्यर्थ, अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पर खड़ा हैं। यद्यपि वे परमेश्वर के नाम पर धमकी देते हैं, किंतु वे जानबूझ कर उसका विरोध करते हैं। यद्यपि वे स्वयं को परमेश्वर का विश्वासी दर्शाते हैं, किंतु ये वे लोग हैं जो मनुष्यों का मांस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें विचलित करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाना चाहते हैं या सही मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं, और वे बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट उत्पन्न करती हैं। यद्यपि वे 'मज़बूत देह' वाले हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे ईसा-विरोधी हैं जो लोगों को परमेश्वर के विरोध में ले जाते हैं? वे कैसे जानेंगे कि ये जीवित शैतान हैं जो निगलने के लिए विशेष रूप से आत्माओं को खोज रहे हैं?" ("जो लोग परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे ही परमेश्वर का विरोध करते हैं")। "यदि तुमने वर्षों तक परमेश्वर पर विश्वास किया है, फिर भी कभी भी उसका आज्ञापालन नहीं किया है या उसके सभी वचनों को स्वीकार नहीं किया है, बल्कि उसके बजाए परमेश्वर से समर्पण करने को और तुम्हारी अवधारणाओं के अनुसार कार्य करने को कहा है, तो तुम सब से अधिक विद्रोही व्यक्ति हो, और तुम एक अविश्वासी हो। एक ऐसा व्यक्ति कैसे परमेश्वर के कार्य और वचनों का पालन करने में समर्थ हो सकता है जो मनुष्य की अवधारणाओं के अनुरूप नहीं है? सबसे अधिक विद्रोही मनुष्य वह है जो जानबूझकर परमेश्वर की अवहेलना करता है और उसका विरोध करता है। वह परमेश्वर का शत्रु है और मसीह विरोधी है। ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के नए कार्य के प्रति निरंतर शत्रुतापूर्ण रवैया रखता है, ऐसे व्यक्ति ने कभी भी समर्पण करने का जरा सा भी इरादा नहीं दिखाया है, और कभी भी खुशी से समर्पण नहीं दिखाया है और अपने आपको दीन नहीं बनाया है। वह दूसरों के सामने अपने आपको ऊँचा उठाता है और कभी भी किसी के प्रति भी समर्पण नहीं दिखाता है। परमेश्वर के सामने, वह स्वयं को वचन का उपदेश देने में सबसे ज़्यादा निपुण समझता है और दूसरों पर कार्य करने में अपने आपको सबसे अधिक कुशल समझता है। वह उस अनमोल 'ख़जाने' को कभी नहीं छोड़ता है जो पहले से ही उसके अधिकार में है, बल्कि आराधना करने, दूसरों को उसके बारे में उपदेश देने के लिए, उन्हें अपने परिवार की विरासत मानता है, और उन मूर्खों को उपदेश देने के लिए उनका उपयोग करता है जो उसकी पूजा करते हैं। कलीसिया में वास्तव में कुछ संख्या में ऐसे लोग हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि वे 'अदम्य नायक' हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी परमेश्वर के घर में डेरा डाले हुए हैं। वे वचन (सिद्धांत) का उपदेश देना अपना सर्वोत्तम कर्तव्य समझते हैं। साल दर साल और पीढ़ी दर पीढ़ी वे अपने 'पवित्र और अनुलंघनीय' कर्तव्य को जोशपूर्वक लागू करने की कोशिश करते रहते हैं। कोई उन्हें छूने का साहस नहीं करता है और एक भी व्यक्ति खुलकर उनकी निन्दा करने का साहस नहीं करता है। वे परमेश्वर के घर में 'राजा' बन गए हैं, और युगों-युगों से दूसरों पर क्रूरतापूर्वक शासन करते हुए उच्छृंखल चल रहे हैं। दुष्टात्माओं का यह झुंड संगठित होकर काम करता है और मेरे कार्य का विध्वंस करने की कोशिश करता है; मैं इन जीवित दुष्ट आत्माओं को अपनी आँखों के सामने अस्तित्व में रहने की अनुमति कैसे दे सकता हूँ?" ("जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे")। जाहिर है कि हालांकि धार्मिक पादरी और एल्डर अक्सर बाइबल की व्याख्या करते हैं, मगर वे ऐसे लोग नहीं हैं जो सत्य को समझते हों और परमेश्वर को जानते हों। ये लोग सटीक रूप से पाखंडी फरीसी हैं। वे झूठे अगुआ और कार्यकर्ता हैं, जो लोगों को धोखा देते हैं, काबू में करके बाँध देते हैं और उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। वे मसीह को नकारने और उनकी निंदा करने, यहाँ तक कि परमेश्वर का भी विरोध करने के लिए लोगों की अगुवाई करते हैं, और उन सबको शैतान के सह-अपराधी और कठपुतलियाँ बना देते हैं। क्या यह एक स्पष्ट तथ्य नहीं है?

 

— "राज्य के सुसमाचार पर विशिष्ट प्रश्न और उत्तर संकलन" से उद्धृत

 

वास्तव में प्रभु की गवाही देना और प्रभु को गौरवान्वित करने का इस बात से कोई संबंध नहीं है कि मनुष्य बाइबल की व्याख्या कैसे करता है। सार यह है कि क्या वे परमेश्वर के वचनों को अमल में ला पाते हैं और उनके कार्यों का अनुभव कर पाते हैं। अगर मनुष्य सच्चाई से प्रेम करते हैं तो उन्हें पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और परमेश्वर के वचन का सच्चा अनुभव और ज्ञान प्राप्त होगा। यह ज्ञान परमेश्वर के वचनों के अमल में लाने और अनुभव करने से उत्पन्न होता है। सही मायनों में परमेश्वर को जानने का मतलब यही तो है। इन वास्तविक अनुभवों और गवाहियों के संवाद का मतलब ही वास्तव में परमेश्वर को गौरवान्वित करना और उनकी गवाही देना है! परमेश्वर का सच्चा ज्ञान, जिसकी चर्चा उनको गौरवान्वित करने वाले और उनकी गवाही देनेवाले करते हैं, वो उनकी खुद की धारणाओं, कल्पना या तर्क से नहीं आता; यह उनके द्वारा परमेश्वर के वचनों की शाब्दिक व्याख्या से तो बिलकुल नहीं आता। वे लोग जो परमेश्वर को गौरवान्वित करते हैं और उनकी गवाही देते हैं वे बाइबल में दर्ज परमेश्वर के वचनों, परमेश्वर की इच्छा, उनकी लोगों से अपेक्षा, उनके स्वभाव, उनके स्वरूप पर ध्यान देते हैं जिससे लोग परमेश्वर की इच्छा और स्वभाव को समझ पाते हैं और सही मायनों में परमेश्वर को जान पाते हैं। इसी तरह से लोग परमेश्वर को सही मायनों में आदर देकर उनकी आज्ञा का पालन कर सकते हैं। इस तरह की बाइबल पर आधारित व्याख्याओं और परमेश्वर के वचनों के बारे में संवाद करके ही वे परमेश्वर को गौरावान्वित कर सकते हैं और उनकी गवाही दे सकते हैं। लेकिन, जब पादरी और एल्डर्स बाइबल की व्याख्या करते हैं, क्या वे वास्तव में परमेश्वर के वचनों के सच्चे सार का संवाद कर सकते हैं? क्या वे परमेश्वर की इच्छा का संवाद कर सकते हैं? क्या वे परमेश्वर के स्वभाव की गवाही दे सकते हैं? क्या वे दूसरों को परमेश्वर को जानने, उनकी आज्ञा का पालन करने या उनका आदर करने के लिए तैयार कर सकते हैं? तथ्यों ने हमें यह दिखा दिया है कि धार्मिक समुदायों में बहुत से पादरी और एल्डर्स सत्य से नफरत और परमेश्वर का विरोध करते हैं; और यही उनका वास्तविक स्वभाव है। वे परमेश्वर के वचनों का पालन या उनके कार्यों का अनुभव नहीं करते। वे उनकी इच्छा और अपेक्षा को बिल्कुल नहीं समझते, और वे निश्चित तौर पर उनके स्वभाव और स्वरूपको नहीं समझते। इसीलिए, वे परमेश्वर के सच्चे ज्ञान का संवाद नहीं कर सकते, और वे प्रभु यीशु के दिव्य सत्व या मनमोहक विशेषताओं की गवाही नहीं दे सकते। वे सिर्फ बाइबल के ज्ञान और धार्मिक सिद्धांत की या बाइबल में मौजूद कुछ पात्रों की कहानियों की और उनके साथ जुड़ी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की व्याख्या करते हैं, जिससे लोग उनकी प्रशंसा करें और उनके साथ जुड़ें। वे लोग प्रभु की प्रशंसा या उनकी गवाही बिल्‍कुल भी नहीं दे रहे हैं।

 

सिर्फ यही नहीं, अधिकतर तो पादरी और एल्डर्स मनुष्य के वचनों की व्याख्या करते हैं, जैसे की बाइबल में पौलुस के वचन। पौलुस के अनुसार, "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है" (2 तीमुथियुस 3:16), वे बाइबल के वचनों को ऐसे मानते हैं जैसे कि वो परमेश्वर के वचन हों। इसने सम्पूर्ण धार्मिक समुदायों को यह मनवा दिया है कि प्रेरितों के वचन ही परमेश्वर के वचन हैं और विश्वासियों को इन्हीं पर अमल करने और इन्हीं का पालन करने के लिए कहा। जब वे उपदेश देते हैं, संवाद करते हैं या गवाही देते हैं तो वे प्रेरितों के वचनों का ही अधिक से अधिक बार हवाला देते हैं। जबकि, वे परमेश्वर और प्रभु यीशु का कम से कम हवाला देते हैं। अंत में परिणाम यह हुआ है कि बाइबल के परमेश्वर और प्रभु यीशु के सभी वचनों को बदल कर प्रभावहीन कर दिया गया। लोगों के दिलों में प्रभु यीशु की जगह लगातार कम हो रही है, जबकि पौलुस और दूसरों का स्थान उनके दिलों में लगातार बढ़ रहा है। बाइबल में पौलुस के वचन, और दूसरे लोगों के वचनों के होने से ही, वे लोगो के दिलो में जगह बना पाए हैं। लोग सिर्फ प्रभु यीशु के नाम में विश्वास रखते हैं, लेकिन वास्तव में वे बाइबल में मौजूद मनुष्य के वचनों के साथ ही आगे बढ़ रहे हैं, जैसे कि पौलुस के वचन। वे परमेश्वर में विश्वास के लिए अपने ही मार्ग पर चल रहे हैं। वे लोग जो परमेश्वर में इस तरह विश्वास रखते हैं वे प्रभु के मार्ग से कैसे नही भटक सकते? इस प्रकार की सेवा परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप कैसे हो सकती है? उदाहरण के लिए, प्रभु यीशु ने एक बार स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के बारे में यह कहा था: "परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)। जबकि, पादरी और एल्डर्स, इसके बजाय पौलुस के वचनों के अनुसार उद्धार और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश की बात करते हैं। यह प्रभु यीशु के वचनों के साथ पूरी तरह धोखा है। इसका नतीजा यह हुआ है कि बहुत से विश्वासी जानते ही नहीं हैं कि परमेश्वर कि इच्छा का अनुसरण कैसे करें। यहाँ तक कि उनको यह भी नहीं पता कि किस तरह के लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। लोग पौलुस के वचनों को सिद्धांत के रूप में इस्तेमाल करते हैं: "मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्‍वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है" (2 तीमुथियुस 4:7-8)। पादरी और एल्डर्स दूसरों को पढ़ाते हैं कि यदि वे पौलुस की तरह प्रभु के लिए मेहनत करेंगे और कष्ट को सहेंगे, तो ही वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकेंगे। वे प्रभु के वचनों के स्थान पर मनुष्य के वचनों को रखते है; वे प्रभु के वचनों को शामिल नहीं करते हैं। नतीजा यह है लोग उनकी वजह से गुमराह हो रहे हैं। इस तरह बाइबल की व्याख्या करके, क्या वे परमेश्वर को गौरवान्वित कर रहे हैं या परमेश्वर की गवाही दे रहे हैं? मुझे लगता है वे साफ़ तौर पर परमेश्वर का विरोध कर रहे हैं! यह समस्या बहुत गंभीर है! धार्मिक पादरी और एल्डर्स, अकसर परमेश्वर के वचनों को बाइबल में मनुष्यों के वचनों से बदल देते हैं। अब हम इसके परिणामों के बारे में स्पष्ट समझ गये होंगे, सही है ना? यह कैसे संभव है कि इतने सारे लोग इतने वर्षों तक प्रभु में विश्वास तो करें, लेकिन अभी तक उनको जान न पायें? उनको कभी भी प्रभु के वचनों का वास्तविक अनुभव न हो? प्रभु में इस प्रकार विश्वास करने वाले कभी भी सत्य या जीवन को कैसे प्राप्त कर पायेंगे? क्या यह इसलिए नहीं है क्योंकि पादरियों और एल्डर्स ने बाइबल से लगातार सिर्फ मनुष्यों के वचनों की व्याख्या की और उनके बारे में ही गवाही दी और अपने अनुयायियों से सिर्फ़ इन्हीं वचनों पर अमल करने का अनुरोध किया?

 

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य ने धार्मिक समुदायों के इन पादरियों, और एल्डर्स, इन मसीह-विरोधी राक्षसों को उजागर कर दिया है। वरना, कोई भी यह नहीं देख पाता कि उनकी बाइबल की व्याख्या और उसको गौरवान्वित करने का काम, वास्तव में लोगों को धोखा देने और नियंत्रित करने के कपटी तरीके हैं, न ही कोई इस सच को देख सकने में सक्षम होगा कि वे परमेश्वर के दुश्मन के रूप में अपने स्वयं के, स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर रहे हैं। उस समय में, फरीसियों ने बाइबल को गौरवान्वित किया और उसकी गवाही दी; उन्होंने परमेश्वर को बाइबल तक ही सीमित रखा। उन्होंने कभी सत्य की खोज या परमेश्वर के पदचिन्हों का अनुसरण करने की कोशिश नहीं की। नतीजा यह हुआ कि उन्होंने, प्रभु यीशु द्वारा पुराने नियमों का अनुसरण करने से इन्कार करने को अपना तर्क बना कर उन्हें सूली पर लटका दिया, उन्होंने एक बहुत गंभीर पाप किया है! अंत के दिनों में पादरी और एल्डर्स बिल्कुल ऐसे ही थे जैसे कि फरीसी। वे बाइबल को गौरवान्वित कर और उसकी गवाही देते हैं; वे बाइबल के परमेश्वर की व्याख्या करते हैं। उन्होंने यह कहकर भ्रांतियां भी फैलाई कि, "परमेश्वर के कोई भी वचन या कार्य बाइबल से बाहर नहीं हैं," "बाइबल में विश्वास करना ही परमेश्वर में विश्वास करना है। बाइबल परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करती है; अगर आप बाइबल को छोड़ते हैं, तो आप परमेश्वर में विश्वास नहीं करते।" वे इन शब्दों का इस्तेमाल लोगो को गुमराह करने और उनको सिर्फ बाइबल पर विश्वास और उसकी अराधना करवाने के लिए करते हैं। पादरी और एल्डर्स इस रहस्य का इस्तेमाल, छलकपट के द्वारा लोगों को परमेश्वर से छल से चुराने, उनसे दूर करने और उनको बाइबल के करीब लाने के लिए कर रहे हैं। इससे अवचेतन रूप से लोगों का परमेश्वर के साथ संबंध खत्म होता जा रहा है। जो लोग पहले परमेश्वर में विश्वास किया करते थे, अब सिर्फ बाइबल में विश्वास करते हैं। "बाइबल ही उनके दिलों में प्रभु, उनके दिलों में परमेश्वर बन जाती है।" इसलिए, बाइबल में अपने अंधे विश्वास और आराधना के कारण वे बाइबल के विद्वानों, पादरियों और एल्डर्स की आराधना और अनुसरण करने लगते हैं। पादरियों और एल्डर्स की बात लें, तो, वे बाइबल का इस्तेमाल धार्मिक समुदायों को नियंत्रित करने और अपनी खुद की अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए एक साधन की तरह करते हैं। वे लोगों को धोखा देने, फुसलाने और नियंत्रित करने के लिए बाइबल को गौरवान्वित करते हैं और संदर्भ से बाहर इसकी व्याख्या करते हैं। वे अवचेतन मन से लोगों को मनुष्यों की आराधना और अनुसरण करने, परमेश्वर का विरोध करने और उनका दुश्मन बनने के रास्ते पर लोगों की अगुवाई करते हैं। वे लोगों को यह सोचने के लिए गुमराह करते हैं कि बाइबल की आराधना और बाइबल को पास रखना, परमेश्वर में विश्वास करना, और परमेश्वर की मौजूदगी पाना है। इसलिए, ये लोग परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को न खोजते न ही उसका अध्ययन करते हैं, और उद्धार के अपने अंतिम मौके को गवां देते हैं। वाकई ये शैतान की बहुत ही कपटी और शातिर योजना है। इसलिए, हम देख सकते हैं कि धार्मिक समुदायों के पादरियों और एल्डर्स, असली फरीसियों और ठगों का गुट हैं! वे झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी हैं, जो परमेश्वर के द्वारा चुने लोगों को नियंत्रित करते हैं! धार्मिक समुदाय, फरीसियों और मसीह विरोधी राक्षसों के एक ऐसे समूह द्वारा नियंत्रित है जो परमेश्वर का विरोध करता है। यह एक ऐसी जगह नहीं रह गयी जहाँ से पहले परमेश्वर अपना कार्य कर सकते थे। यह एक शैतानी लोगों का डेरा बन गया है जो परमेश्वर को अपना दुश्मन मानता है। यह बहुत समय पहले ही महान शहर बेबीलोन बन गया था! धर्मपरायण बेबीलोन कैसे परमेश्वर के क्रोध का निशाना नहीं बन सकता है?

 

— "राज्य के सुसमाचार पर विशिष्ट प्रश्न और उत्तर संकलन" से उद्धृत

 

स्रोत: यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए

 

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